#धर्म
February 17, 2025
हिमाचल के वो देवता साहिब : जिन्हें सभी देवी-देवता लगाते हैं हाजिरी, जो शिवरात्रि में चलते हैं सबसे आगे
इन देवता साहिब को माना जाता है एक पूरी रियासत का राजा
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मंडी। हिमाचल प्रदेश की धरती को ‘देवभूमि’ कहा जाता है, क्योंकि यहां के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।
लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘देव परंपरा’ कहा जाता है। हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता महाराज के बारे में बताएंगे- जिन्हें आज भी एक पूरी रियासत का राजा माना जाात है। इन देवता साहिब को खुद राजा ने अपना राजपाठ समर्पित कर दिया था और खुद देवता साहिब का सेवक बन गए थे।
यह देवता महाराज अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि में सबसे आगे चलते हैं और इन्हें माना जाता है भगवान श्रीकृष्ण का रूप। हम बाक कर रहे हैं मंडी के राजा कहे जाने वाले देव राज माधव राय की- जिन्हें लोग माधोराय कहकर भी पुकारते हैं।
इतिहास में वर्णित है कि जब 17वीं सदी में मंडी रियासत के राजा सूरज सेन के सभी 18 पुत्रों की मौत हो गई - तो उन्होंने अपना सारा राजपाठ भगवान श्रीकृष्ण के रूप यानी राज माधव राय के नाम कर दिया और खुद उनके सेवक बन गए।
तब से ही देव माधोराय को मंडी रियासत का राजा माना जाता है और जब भी यहां शिवरात्री महोत्सव की शुरुआत होती है- तो खुद मुख्यमंत्री भी सबसे पहले राज माधव राय की पूजा करते हैं। फिर इनकी पालकी को ही शोभायात्रा में सबसे आगे चलाया जाता है। उनके सम्मान में कुल तीन शाही जलेब निकाली जाती हैं, जो राजमहल से होते हुए पड्डल मैदान तक जाती है।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में आने वाले सभी देवी-देवता भी पहले राज माधव राय मंदिर में आकर हाजिरी देते हैं और उसके बाद ही शिवरात्रि महोत्सव में शामिल होते हैं।
इसके अलावा होली के दिन भी राजा माधव राय अपनी दिव्य पालकी पर सवार होकर मंडी की परिक्रमा करने निकलते हैं और लोगों के साथ होली भी खेलते हैं। वहीं, दस्तावेज तो यहां तक बताते हैं कि भारत गणराज्य में मंडी रियासत का विलय करने से पहले भी देवता साहिब माधव राय की अनुमति ली गई थी।