#धर्म
March 8, 2025
हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनके मंदिर में चढ़ाए जाते हैं कफन
चिता पर बैठ उलटे बाजे पर नृत्य किया करते थे ये देवता
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शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हैं। लोग अपने देवताओं को केवल पूजनीय नहीं, बल्कि संरक्षक भी मानते हैं। यहां हर गांव का अपना स्थानीय देवता या देवी होती है। इन देवताओं की अपनी मान्यताएं और परंपराएं होती हैं, जिन्हें पीढ़ियों से निभाया जाता रहा है।
देवता केवल पूजा तक सीमित नहीं रहते, बल्कि किसी भी शुभ कार्य, त्योहार या महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले देवी-देवताओं की राय ली जाती है। हिमाचल में देव परंपरा की एक विशेषता यहां की देव पालकी यात्रा है। यह परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें गांव के देवता की पालकी भक्तों द्वारा कंधे पर उठाकर यात्रा करवाई जाती है। पालकी यात्रा के दौरान भक्त नाचते-गाते हैं और भक्ति में लीन हो जाते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनके मंदिर में मुर्दे का कफन चढ़ाते हैं। यह देवता साहिब शमशान में चिता पर बैठ उलटे बाजे पर भी नृत्य किया करते थे।
देवता साहिब के बारे में एक मशहूर कहावत है कि-
देओ ले देओ, भूता ले भूत , राक्सा ले राक्स
हम बात कर रहे हैं रथ पर भी जनेऊ धारण करने वाले कोटगढ़ के आराध्य देवता साहिब मारिच्छ जी की। इन देवता साहिब को 11 प्रजापतियों में से चौथा प्रजापति माना जाता है। सप्त ऋषियों में इन देवता साहिब जी की गिनती की जाती है।
बताते हैं कि, 18 बाणों और असंख्य शक्तियों के मालिक देवता मरिछ जी का पुराना स्वरूप कुछ ऐसा था कि अगर कोई व्यक्ति सीधे-सीधे उन्हें देख ले, तो उसे चटका लग जाती थी। इस कारण से देवता जी बाहर निकलने पर लोग या तो अपने घरों में बंद हो जाते थे या फिर तौंग से झांककर देवता जी के दर्शन करते थे।
वहीं, अगर इसके बावजूद किसी को देवता जी की ‘चटका’ लग गई तो, उसे शाड़ी और ह्वारी यानी एक टोकरी अनाज लेकर देवता जी के पास जाना पड़ता था- तब उसकी चटका ठीक होती थी। पुराने समय में ये देव अपने गूर के शरीर में प्रवेश कर श्मशान में उल्टे बाजे पर नृत्य भी करते थे मगर अब ये परंपरा बंद कर दी गई है।
वहीं, देवता मारिच्छ जी के क्षेत्र में किसी की मृत्यु होने पर मरने वाले व्यक्ति पर चढ़े कफन को मंदिर में लाकर देवता जी के वजीर नजेरू जी के स्तंभ पर चढ़ाया जाता था। इसके बाद मृतक के नाखून और बाल को देवता जी के धनैरे में डाला जाता था और जब देवता अपने गूर में प्रवेश करते थे, तो इसी धनैरे से निकलने वाले धुएं से धूनी लेते थे।