#धर्म
May 14, 2025
हमारे हिमाचल के वो देवता महाराज- जो मधुमक्खियों के जरिए दिखाते हैं साक्षात चमत्कार
देवता साहिब आज भी हैं 3 बढ़, 2 कोठी और 2 राज के मालिक
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कुल्लू। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं। हिमाचल के लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का सदस्य मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।
हिमाचल के लोगों की यह गहरी धार्मिक आस्था उन्हें न केवल एक-दूसरे से जोड़ती है, बल्कि उनकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए रखती है। उनके लिए देवी-देवता केवल पूजा के प्रतीक नहीं, बल्कि उनके जीवन की शक्ति और प्रेरणा हैं। देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक माने जाते हैं, जो हर परिस्थिति में लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हमारे हिमाचल के एक ऐसे देवता महाराज के बारे में बताएंगे- जो सबसे पहले दिल्ली में प्रकट हुए और आज भी हैं 3 बढ़, 2 कोठी और 2 राज के मालिक।
इन देवता साहिब का स्वभाव सहज सा है। मगर ये देव अत्यंत शक्तिशाली हैं। ये देवता साहिब मधुमक्खियों के जरिये साक्षात चमत्कार दिखाते हैं। हम बात कर रहे हैं जीभी घाटी के अधिष्ठाता गढ़पति श्री शेषनाग जी महाराज की।
माना जाता है कि द्वापर युग में ये देवता साहब सबसे पहले इन्द्रप्रस्थ- यानी आज की दिल्ली- में प्रकट हुए। जहां से वो हिमालय की ओर बढ़ते हुए मंडी के मूल माहूँनाग पहुंचे और वहां अपनी जेरठी- यानी ज्येष्ठ कला स्थापित की।
इसके बाद शेषनाग जी आनी की बाल्य बीढ़ नामक जगती पर पहुंचे। फिर बंजार के जीभी में आकर अपना आधिपत्य स्थापित किया। मगर आज भी देवता साहिब हर 12 से 18 साल में अपने हजारों हरियानों के साथ जगती-बाल्य बीढ़ पर शक्ति अर्जित करने जाते हैं। जहां से ठीक सामने मूल माहूँनाग का स्थान नजर आता है।
यहां घंटों तक देव कार्रवाई होती है, ढोल-नगाड़ों की थाप पर हरियाने पुकारते हैं: “म्हारे माहूँनागा घोरा बे चाल…म्हारे शेषनागा घोरा बे चाल…”
और फिर होता है चमत्कार- माहूँ यानी मधुमक्खी, देवता साहब के मोहरों पर आकर बैठती हैं और यही संकेत होता है कि उनका शक्ति अर्जन पूर्ण हुआ।
वहीं, बैसाख की संक्रांति से लेकर 7 बैसाख तक देवता जी के मेले मनाए जाते हैं। साल में दो बार देवता जी सभी हारियों की परिक्रमा करते हैं- जिनमें मूल माहूँनाग, धींजू, लाम्बा लाम्ब्री की जोगनी, सर्योल्सर, जगतपुर गढ़ और जोगी पाथर शामिल हैं।
कहा जाता है कि जीभी का नाम भी देवता शेषनाग जी के मंदिर के स्थान के कारण पड़ा है। क्योंकि मंदिर के दोनों ओर दो खड्ड बहती हैं और बीच का स्थान जीभ की आकृति जैसी दिखाई देती है।