#धर्म
May 6, 2025
हमारे हिमाचल के वो देवता महाराज- जिनके मंदिर का स्थान चींटियों ने किया था तय
भौदरी जाच की पूरे हिमाचल में है मान्यता
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शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोगों की देवी-देवताओं के साथ गहरी आस्था जुड़ी हई है। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। हिमाचल की धार्मिक आस्था विभिन्न उत्सवों, लोक नृत्यों और परंपराओं में भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम बात करेंगे हमारे हिमाचल के उन देवता महाराज की- जिनके मंदिर का स्थान चींटियों ने तय किया था। इनके भौदरी जाच की पूरे हिमाचल में मान्यता है- जब अपने अपने महाभाद्र रथ में ये देव विराजमान होते हैं।
इन देवता साहिब की गुफा में सिर्फ उनके माली को ही मिलता है प्रवेश। आज भी 18 बाण, 8 देवताओं और हर तरह की शक्तियों को साथ लेकर चलते हैं।
हम बात कर रहे हैं देवता साहब जोगेश्वर महादेव जी की- जिनके बरनाला जातर में श्मशान से आई 365 शाडी यानी कपड़ा उनके रथ पर सजाया जाता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में ऋषियों द्वारा कुल्लू के दलाश गांव में द्वादश शिवलिंग यानी 12 शिवलिंग स्थापित किए गए थे- तभी से इस स्थान का नाम द्वादश या स्थानीय बोली में द्वाश या दलाश हो गया।
वहीं, प्राचीन काल में देवता जोगेश्वर महादेव जी का मोहरा कुईकांडा नामक स्थान पर मंदिर में स्थापित था। मगर एक बार साथ बहती हिमरी खड्ड में बाढ़ आने से यह मोहरा बह गया और रठोह गांव में एक किसान के खेत में आ पहुंचा।
जहां से किसान उस मोहरे को अपने घर गंछवा ले गया। पर जब भी वो इसे अनाज के बक्से में रखता – तो मूर्ति खुद बाहर आ जाती। ऐसे में किसान ने उस मूर्ति पूजा शुरू की और फिर एक दिन... देववाणी हुई – “ये कोई साधारण मूर्ति नहीं, ये महादेव हैं।”
देवता ने कहा – “अब एक चींटियों की कतार निकलेगी… जहाँ वो रुकेंगी, वहाँ मेरा मंदिर बनाना।” देववाणी के अनुसार चींटियां वहां से निकलकर दलाश आकर रुकी जहाँ आज भी देवता जी का भव्य मन्दिर मौजूद है।
जहां जोगेश्वर महादेव् के साथ मां पार्वती भी मौजूद होती हैं, लेकिन वो उनके रथ में नहीं विराजती । वहीं, केवल रक्षा बंधन के पहले दिन शाला के दौरान जोगेश्वर महादेव अपने पूरे परिवार के साथ मंदिर से बाहर आते हैं।