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April 28, 2025

हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनके अधिपत्य में हुआ था अश्वमेध यज्ञ, संतान देव के नाम से हैं विख्यात

दैत्यराज बलि की कर्मस्थली में विराजते हैं ये देवता महाराज

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Devta Maharaj Mangleshwar Mahadev Ji

शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोगों की देवी-देवताओं से गहरी आस्था जुड़ी हुई है। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं।

देवी-देवता को मानते हैं मार्गदर्शक

हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

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कहलाए जाते हैं संतान देव

आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जो दैत्यराज बलि की कर्मस्थली में विराजते हैं और कहे जाते हैं- मंगल दाता। हमारे इन्हीं महादेव के अधिपत्य में हुआ था 100वें अश्वमेध यज्ञ का आयोजन। ये संतान देव के नाम से भी विख्यात हैं।

 

हमा बात कर रहे हैं शाश्वत सत्य-मंगलकारी-देवता साहब मंगलेश्वर महादेव जी की- जो शिमला ठियोग में पांडव नगरी नाम से विख्यात बलग में विराजते हैं। बताते हैं कि ये जगह पहले दैत्यराज बलि की कर्मस्थली हुआ करती थी और देवराज इंद्र का पद प्राप्त करने के लिए राजा बलि ने इसी स्थान पर 100वां अश्वमेध यज्ञ भी किया था।

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धरती से हुई थी उत्पति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शिव स्वरूप देवता साहब मंगलेश्वर महादेव जी की उत्पत्ति धरती से हुई थी। कथा बताती है कि यहां गांव के बीचों-बीच एक खेत में भेखल की झाड़ी लगी थी- जहां रोजाना एक गाय जाती थी और वहां दूध की धार छोड़कर चली आती थी। फिर जब गांव के बुजुर्गों ने गाय को ऐसा करते देखा- तो जिज्ञासावश उन्होंने वहां खुदाई शुरू कर दी। जिसके परिणामस्वरूप जमीन से एक देव प्रतिमा प्राप्त हुई और लोग उसे पूजने लगे।

 

राजा को चला चमत्कार का पता

वहीं, जब रतेश रियासत के राजा को इस चमत्कार का पता चला तो उन्होंने वहां देवता मंगलेश्वर महादेव जी का मंदिर बनवाया। आज भी रतेश रियास्त के राजा देव परंपराओं को पूरा करने में विशेष भूमिका निभाते हैं।

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पांच दिन तक चलता है मेला

वहीं, आदिकाल में देवता जी की 7 जातरें लगती थी लेकिन अब यहां सिर्फ एक ही मेला लगता है- जो 5 दिनों तक चलता है। इसमें देवता जी के पुरोहित चार रात्री और चार प्रहर तक लगातार उनकी पूजा करते हैं और फिर देवता अपने गुर के माध्यम से समस्त जनता को सुख समृद्धि व कल्याण का आशीष देते हैं।

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