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March 16, 2025

हिमाचल की वो देवी मां- बिना मुहरों के भी बोलता है जिनका देव रथ

गलत शक्तियों को पेड़ में कील डालकर देती हैं बांध

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Devi Mata Sihansini Durga

शिमला। देवभूमि हिमाचल प्रदेश के लोगों की देवी-देवताओं से जुड़ी आस्था उनके सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यहां के हर गांव का अपना इष्ट देवता या देवी होती है। हिमाचल के लोग अपने देवी-देवताओं को परिवार के सदस्य की तरह मानते हैं और हर खुशी या संकट के समय उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

देवी-देवताओं में गहरी आस्था

देवी-देवताओं के स्वागत के लिए निकाले जाने वाले जुलूस यहां की परंपरा का प्रतीक हैं। हिमाचल के लोगों की यह गहरी धार्मिक आस्था उन्हें न केवल एक-दूसरे से जोड़ती है, बल्कि उनकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए रखती है। उनके लिए देवी-देवता केवल पूजा के प्रतीक नहीं, बल्कि उनके जीवन की शक्ति और प्रेरणा हैं।

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बिना मुहरों के बोलता है रथ

आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल की एक ऐसी देवी मां के बारे में बताएंगे- जिनका देव रथ बिना मुहरों के बोलता है। इसमें से एक मुहरे पर रहस्यमयी निशान लगे हुए हैं।

 

गलत शक्तियों को बांध देती हैं मां

इन माता रानी का रथ भूत-प्रेतों और राक्षसों का संहार करने के लिए घने अंधेरे में चलता है। इतना ही नहीं ये माता रानी पेड़ में कील डालकर गलत शक्तियों को बांध देती हैं। हम बात कर रहे हैं शिमला-ननखरी के खमाडी क्षेत्र में विराजने वाली माता सिहांसिनी की।

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कहीं रोशनी, कहीं अंधेरा

कथा अनुसार: बिहार के बोधगया से चार तपस्वी हिमाचल आए थे- जो खमाडी की पहाड़ी चढ़ते हुए रोहड़ू की ओर जाने लगे। मगर जब ये तपस्वी खमाडी से रोहड़ू की ओर बढ़ते, तो उनके सामने अंधेरा छा जाता और जब वे खमाडी की ओर देखते तो उन्हें रौशनी दिखती।

संदूक में रखे चार मोहरे

फिर बार-बार ऐसा ही हुआ, तो ये तपस्वी खमाडी गांव पहुंचे और उन्होंने पाया कि यहां आदि शक्ति का वास है। जिसके बाद वे वहां एक यज्ञ करने लगे और अपने साथ लेकर आए चार मोहरों को पवित्र संदूक में रख दिया।

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महिलाओं ने खोला संदूक

मगर फिर बिशु के दिन स्थानीय महिलाओं ने जिज्ञासा वश उस संदूक को खोल दिया। जिससे अग्नि प्रज्वलित हुई और नाग देवता के दर्शन भी हुए। मगर अग्नि देखकर महिलाओं को लगा कि वहां आग लग गई है। ऐसे में उन्होंने उस पवित्र अग्नि को बुझा दिया- अन्यथा आज इस स्थान पर मां ज्वाला की तरह जोत जल रही होती।

मोहरों पर गाय के चाटने के निशान

हालांकि, ये चार मुहरे आज भी माता की पालकी पर सजते हैं। वहीं, माता की पालकी पर सजने वाले असल मोहरे पर गाय के चाटने का निशान आज भी देखने को मिलता है और देवी मां के रथ में सजे सभी 11 मुहरे आप रूपी हैं। वहीं, रविवार के दिन माता की पालकी बिना मोहरे के भी दुख दर्द सुनने के लिए मंदिर प्रांगण में निकलती है।

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