#धर्म
March 12, 2025
हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनका अपने आप ही चलता है रथ, अघोरी रूप में होती है पूजा
जिनके आधिपत्य में एक साथ विराजित होते हैं- हर और हरी
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शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं।
हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनका रथ अपने आप ही चलता है। इन देवता साहिब को शिव के अघोर रूप में पूजा जाता है। इन देवता साहिब के आधिपत्य में एक साथ हर और हरी विराजित होते हैं।
हम बात कर रहे हैं चार रियासत, तीन मुल्क, 52 कोठी, पांच महल और तीन राज के मालिक: देवता साहब महाकालेश्वर पन्दोई स्वरुप देवता महाकालेश्वर पझारी जी की। जिनका मुख्य मोहरा महाकालेश्वर पंदोई के ढेओकर मोहरे की तरह ही एक जमाने में मृत्यु दंड दिया करता था। इसलिए कुल्लू के राजा मान सिंह ने विनती कर के 1688 से 1719 के बीच इस मोहरे को देव रथ से उतरवा दिया था।
कुल्लू के बंजार में विराजित देवता साहब महाकालेश्वर पझारी जी अपनी देव गणाई में कहते हैं- एकू पुंझे मुड़दे जालदो दूजे पूंझे जात्रा लाउंदो। यानी की मैं एक तरफ मुर्दे को जलाता हूँ तो दूसरी तरफ मैं नृत्य करता हूं। इसलिए हर साल फाल्गुन के महीने में देव श्री महाकाल पझारी जी लगातार तीन दिनों तक भूमिया के शमशान में दिव्य कार्रवाई का निर्वहन करते हैं।
शिव जी के अघोर रूप में पूजे जाने वाले इन देवता साहब को स्थानीय भाषा में ध्राखसा भी कहते हैं-जिसका अर्थ होता है- आधा राक्षस और आधे देव।
बताते हैं कि देवता साहिब पझारी जी का रथ एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार खुद से ही एक फुट आगे चल चुका है- जिसके हजारों गवाह आपको आज भी मिल जाएंगे। वहीं, इनके रथ में देवता लक्ष्मी नारायण भी विराजित होते हैं- जिन्होंने बाहू पहुंचने पर देव श्री महाकाल पझारी जी को अपने देओरे में स्थान दिया था। इसके अलावा महाकाल पझारी जी जिला मण्डी के गाड़ागुशैणी में भुमासी महादेव मंदिर में भी धुर स्तंभ में विराजमान हैं।