#धर्म
March 15, 2025
हिमाचल की वो देवी मां- जिनके नाचने पर भक्त थाम लेते हैं माता रानी की चुनरी
कहलाई जाती हैं वरदान की देवी, स्वयं में हैं 9 देवियों का स्वरुप
शेयर करें:
शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘देव परंपरा’ कहा जाता है।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल की एक ऐसी देवी मां के बारे में बताएंगे- जिन्हें वरदान की देवी कहा जाता है। यह देवी मां स्वयं में 9 देवियों का स्वरूप हैं। ये मां श्रृंगार मात्र के चढ़ावे से अपने भक्तों की मन्नत पूरी कर देती हैं। इन देवी मां के नाचने पर भक्त माता रानी की चुनरी को थाम लेते हैं।
हम बात कर रहे हैं काली कुक्षी- देवी मां आदि शक्ति अम्बिका जी की- जो कुल्लू के निरमंड से आकर मंडी के थाटा में विराजित हुईं। मंडी के राजा इनसे पूछे बिना कभी युद्ध में नहीं जाते थे।
कथा के अनुसार, सदियों पहले मधा गांव का एक व्यक्ति आजीविका कमाने कुल्लू गया- जहां उसने पंडित परिवार में काम करते हुए उनकी बेटी से विवाह कर लिया। मगर जब कुछ समय बाद, उसने पत्नी संग मधा गांव लौटना चाहा, तो उसकी पत्नी ने कुलदेवी माता अम्बिका को साथ ले जाने की शर्त रखी।
ऐसे में व्यक्ति ने माता की मूर्ति ही उठा ली- जिस पर माता ने कहा कि अब जहां भी मुझे रखोगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। बताते हैं कि मधा से एक घंटे की दूरी पर वो व्यक्ति थककर बैठ गया और फिर मूर्ति वहां से हिली ही नहीं; इसलिए कहते हैं कि-
निरमंड का आई माता बेठी थाटा री गुशेनी सोह
वहीं, ये माता रानी देव श्याटी नाग की बहन भी हैं- ऐसे में देवता जी अपनी बहन को नृत्य करते नहीं देख सकते। इसलिए अप्रैल-जुलाई में होने वाले मेलों के अंत में देव शयाटी नाग को कपड़े में लपेट दिया जाता है।
इस दौरान बुरी शक्तियां गाली देकर भगाई जाती हैं और माता मंडी के ढाई फेरे लगाती हैं। जब मधाऊ रे मरेछ यानि मधा गांव के लोग नृत्य करती मां की चुनरी पकड़ लेते हैं और इनका रथ कुल्लू - मंडी सराज के सबसे पुराने रथों में से एक है।