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January 22, 2025

हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनके रथ को उठाती हैं महिलाएं

सूखे पेड़ में भी उगा देते हैं हरा पत्ते

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Devta Sahib Jakh Janglikh

शिमला। देवभूमि हिमाचल के कण-कण में दिव्यता और आस्था का वास है। हिमालय की सुरम्य वादियों में बसे इस प्रदेश का हर गांव, हर पर्वत और हर नदी किसी ना किसी देवी-देवता से जुड़ी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं से ओतप्रोत है। यहां के लोग अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को देवी-देवताओं के साथ जोड़कर देखते हैं।

देवी-देवताओं से जुड़ी है गहरी आस्था

हिमाचल के प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल इस बात के साक्षी हैं कि यह भूमि कितनी पवित्र और आध्यात्मिक है। यहां पर लोकदेवताओं की पूजा भी बड़े धूमधाम से होती है- जो कि देवी-देवताओं के प्रति यहां के लोगों की गहरी आस्था को दर्शाते हैं।

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महिलाएं उठाती हैं देवता साहिब का रथ

आज के अपने इस लेख में हम बात करेंगे हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब की- जिनके रथ को महिलाएं उठाती हैं। यह देवता साहिब सूखे पेड़ में भी हरा पत्ता उगाने की शक्ति रखतने हैं। इन देवता साहिब पर भक्त बर्फ के गोले दागते हैं।

 

पढ़ लेते हैं मन की बात

हम बात कर रहे हैं देवता जाख जांगलिख की- जो पलभर में आपके मन की बात पढ़ लेते हैं। कहते हैं कि तंत्र विद्याओं के स्वामी देवता साहिब जाख जांगलिख की संपति का आजतक जिसने भी बखान किया वो सीधा स्वर्ग सिधारा है।

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जा राचिए-वा थाचिए

वैसे तो देवता जाख जांगलिख का उत्पत्ति स्थल रामपुर में ही माना जाता है। मगर कथाएं बताती हैं कि देवता जाख जांगलिक को उनकी माता ने कहा था कि- जा राचिए- वा थाचिए। यानी: जहां रात होगी और जहां तुम हंसोगे, तुम वहीं बस जाओगे।

 

 

ऐसे में जब एक बार देवता साहिब रोहड़ू के छुहारा वैली में मौजूद जांगलिख गांव में पहुंचे तो- वो वहां हंस पड़े और बाद में उन्होंने डोडरा क्षेत्र में रात बिताई- जिसके बाद से उन्हें दोनों ही क्षेत्रों में आराध्य देव के रूप में पूजा जाने लगा। फिर एक वक्त ऐसा आया जब डोडरा वालों ने देवता को वापस जांगलिख भेजने से मना कर दिया।

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निकालकर ले गए देवता का रथ

साल 1976 में टिक्करी में हुए शांत महायज्ञ में डोडरा वालों ने एक गोलदार घेरे में देवता के रथ को रखा ताकि जांगलिख के लोग देवता को उठाकर ना ले जाएं। मगर तभी देवता जाख ने पुजारी और अन्य लोगों पर छलावा किया और जांगलिक के लोग देवता का मुख्य मोहरा रथ से निकाल ले गए। फिर बाद में दोनों इलाकों के समझौते में तय हुआ कि देवता 3 साल तक जांगलिक में रहेंगे और दो साल डोडरा में।

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