#राशिफल
March 25, 2025
हिमाचल के वो देवता महाराज : पूरी दुनिया में अनोखा है जिनका रथ
सीधा जगन्नाथपुरी से जुड़ा हुआ है देवता साहिब का इतिहास
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शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल प्रदेश के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनका इतिहास सीधा जगन्नाथपुरी से जुड़ा हुआ है। इन देवता साहिब का रथ पूरी दुनिया में सबसे अनोखा है। इन देवता साहिब के जैसा रथ कोई दूसरा रथ पूरी दुनिया में नहीं है।
काठ से बने देवता जी के मण्डयाले का सिर्फ दर्शन कर लेने से ही सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। हम बात कर रहे हैं कलश के प्रमुख देव- नीरू गढ़ के अराध्य देव श्री बिट्ठू नारायण जी महाराज की- जिन्हें श्री लक्ष्मी नारायण के रूप में पूजा जाता है।
इन देवता साहिब के मंदिर में माता लक्ष्मी का भी वास है- जो देव बिट्ठू नारायण के मंदिर से बाहर जाने के बाद मंदिर में ही विराजती हैं। बताते हैं कि माता लक्ष्मी जी के पास अपना खुद का रथ है- जो कि निर्धारित नरोल - यानी केवल कुछ ही परिवारों के घर जाता है और फिर रायत यानी कि आम लोग सिर्फ हूम के दिन ही देवी मां लक्ष्मी के दर्शन कर पाते हैं।
वहीं, बटवाड़ा स्थित कोठी में विराजने वाले देवता बिट्ठू नारायण के कुल 18 मोहरें- जिन्हें 16 मुखी कहा जाता है। फागली उत्सव के दौरान काठ के बने देवता साहब के मण्डयालों का इतिहास जगन्नाथपुरी से जोड़ा जाता है- जिन्हें देखने के लिए हर साल लाखों लोगों की भीड़ इकठ्ठा होती है।
देवता साहब के ये मण्डयाले फागली में बिना किसी भेदभाव के हर एक वर्ण के लोगों के घर आशीर्वाद देने जाते हैं। वहीं, देव बिट्ठू नारायण जी के रथ को मंडी राजा के चूहड़ बजीर ने बनाया था - जिन्होंने पहले तो इसे चांदी में उकेरा था और उनके हाथों का बना मंडप आज भी मौजूद है।