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November 7, 2025
सुक्खू सरकार की बड़ी जीत: इन नेताओं की बंद हुई पेंशन, बिल को राष्ट्रपति की मिली मंजूरी
सुक्खू सरकार ने जयराम सरकार की लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना को किया बंद
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शिमला। हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन करते हुए पूर्व की जयराम सरकार की एक और योजना को बंद कर दिया है। सुक्खू सरकार ने एक ऐतिहासिक और विवादित कदम उठाते हुए हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के इस फैसले को अब राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई है, जिससे यह फैसला अब कानून का रूप ले चुका है। इसके साथ ही अब आपातकाल में जेल जाने वाले नेताओं की पेंशन पूरी तरह से बंद कर दी गई है।
दरअसल पूर्व की जयराम सरकार ने इमरजेंसी के दौरान जेल गए नेताओं के लिए हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत इमरजेंसी में जेल गए नेताओं को मानदेय दिया जा रहा था। 15 दिन जेल में रहने वाले नेताओं को 12 हजार रुपए और उससे अधिक दिन जेल में रहने वाले नेताओं को 20 हजार रुपए मासिक पेंशन दी जा रही थी। इन नेताओं की मृत्यु के बाद उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन दी जा रही थी।
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इमरजेंसी में जेल जाने वाले नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राधा रमण शास्त्री, पूर्व मंत्री सुरेश भारद्वाज, महेंद्र नाथ सॉफ्त और पूर्व मंत्री स्वर्गीय श्याम शर्मा शामिल थे। पूर्व की जयराम सरकार ने इस योजना को शुरू कर इन नेताओं को पेंशन देना आरंभ किया था। लेकिन प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद सुक्खू सरकार ने मार्च 2023 में इस योजना को बंद करने का निर्णय लिया और इसे विधानसभा में पारित कर मंजूरी के लिए राजभवन भेजा था। राजभवन ने इस पर आपत्तियां लगाई थी। बाद में इसे राजभवन से राष्ट्रपति भवन भेज दिया गया था। अब राष्ट्रपति भवन ने इसे मंजूरी दे दी है।
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मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस निर्णय को राजकोष पर अनावश्यक बोझ कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम बताया है। उन्होंने कहा कि हम जनता के टैक्स का पैसा जनकल्याण और विकास के कामों में खर्च करना चाहते हैं, न कि किसी विशेष वर्ग के लाभ के लिए। सरकार जवाबदेह और संवेदनशील शासन देने के लिए प्रतिबद्ध है।
सरकार का कहना है कि इस योजना के तहत दी जा रही पेंशन राज्य के सीमित वित्तीय संसाधनों पर बोझ डाल रही थी। अब इस राशि का उपयोग सामाजिक कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में किया जाएगा।
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इस योजना को वर्ष 2021 में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार ने शुरू किया था। इसे विधानसभा से पारित कर एक अधिनियम के रूप में लागू किया गया था। इस योजना के तहत आपातकाल के दौरान जेल गए नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को लोकतंत्र प्रहरी का दर्जा दिया गया था। इस दौरान 15 दिन तक जेल में रहे व्यक्तियों को 12,000 रुपए प्रति माह पेंशन मिलती थी। जबकि 15 दिन से अधिक अवधि तक जेल में रहे लोगों को 20,000 प्रति माह का मानदेय दिया जाता था। पात्रता में उन विधवाओं को भी शामिल किया गया था जिनके पति आपातकाल के दौरान जेल में रहे थे।
सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के इस कदम ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। भाजपा ने इस निर्णय को अलोकतांत्रिक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कड़ी आलोचना की है।
भाजपा के प्रदेश सह प्रभारी संजय टंडन ने कहा था कि यह योजना सिर्फ पेंशन नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के संघर्ष का सम्मान थी। कांग्रेस सरकार ने इसे खत्म कर यह साबित कर दिया है कि वह आज भी लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
देश में इमरजेंसी 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रही थी। उस दौरान मिसा एक्ट (MISA) और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के तहत हजारों विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल भेजा गया था। लोकतंत्र की बहाली के लिए यह लोग कई महीनों से लेकर वर्षों तक कैद में रहे।