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April 18, 2025

हिमाचल में निगम-बोर्ड के 7 हजार कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट का झटका, जानें कैसे पड़ेगा फैसले का असर

1999 की पेंशन स्कीम बंद करने को दी थी चुनौती 

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Supreme Court decision

शिमला। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल स्टेट फॉरेस्ट, सिविल सप्लाई, एचपीटीडीसी, एचपीएमसी और अन्य उपक्रमों के उन 7 हजार कर्मियों की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उन्होंने हिमाचल सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी थी। अधिसूचना में 1999 की पेंशन योजना को समाप्त करने का आदेश दिया गया था।

सरकार को पेंशन बंद करने का हक

2004 इस आदेश से इन सभी निगमों के कर्मियों की पेंशन बंद हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिमाचल सरकार के पास आर्थिक कारणों से पेंशन बंद करने का पूरा अधिकार है। सरकार का कहना था कि 1999 की पेंशन योजना से उस पर 11500 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ता है और मौजूदा वित्तीय हालत को देखते हुए सरकार के पास पेंशन को जारी रखने का पैसा नहीं है।

 

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कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार कर्मचारी पेंशन, पारिवारिक पेंशन, पेंशन और ग्रेच्युटी योजना को निरस्त करने में सक्षम है। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की बेंच ने याचिका को गलत बताते हुए खारिज कर दिया। याचिका राज्य वन विकास निगम लिमिटेड के रिटायर्ड कर्मियों ने दायर की थी। 

 

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नहीं मिलेंगे अतिरिक्त लाभ

बेंच ने कहा कि इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने कहा था कि हिमाचल सरकार ने कर्मचारियों के पेंशन के हक में कोई कटौती नहीं की है। लेकिन इन कर्मियों को 1999 की योजना के तहत अतिरिक्त लाभ से अब वंचित रहना पड़ेगा। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत लिए गए निर्णय को अनुच्छेद 32 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है।

 

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क्यूरेटिव पिटीशन डालनी थी

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि उन्हें अपनी शिकायत के लिए क्यूरेटिव पिटीशन डालनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने रिट याचिका दायर कर दी। अब पेंशनर्स संघ ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर असंतोष जताते हुए कहा कि जब हिमाचल सरकार अपने 1.36 लाख कर्मियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ दे ही रही है तो निगम-बोर्ड के सात हजार कर्मियों को पेंशन का हक देने में क्यों परेशानी हो रही है। पेंशनर्स संघ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर आगे के कानूनी कदम पर चर्चा करने की बात कही है।

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