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November 20, 2025
नहीं कम हो रही सुक्खू सरकार की मुश्किलें, हाईकोर्ट ने लगाया जुर्माना- जानें क्या है पूरा मामला
चार साल तक जवाब न देने पर राज्य सरकार पर HC का कड़ा रुख
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शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी विभागों की लापरवाही पर सख्त रुख अपनाते हुए सुक्खू सरकार को फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने एक मामले में सुक्खू सरकार द्वारा जवाब ना दाखिल करने पर जुर्माना लगाया है।
कोर्ट ने यह कार्रवाई इसलिए की क्योंकि प्रतिवादी विभाग ने लगभग चार वर्षों तक याचिका पर अपना जवाब दाखिल ही नहीं किया। न्यायाधीश संदीप शर्मा की एकलपीठ ने इस देरी को न्यायालय के आदेशों की खुली अवहेलना करार दिया।
मामले में नोटिस जारी हुए करीब चार साल बीत चुके हैं। याचिका पहली बार 1 दिसंबर 2021 को अदालत के समक्ष सूचीबद्ध हुई थी, लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार या संबंधित विभाग ने अब तक कोई भी जवाब दाखिल नहीं किया।
कोर्ट ने कहा कि इतने लंबे समय तक जवाब न देना दर्शाता है कि प्रतिवादी विभाग न्यायालय की कार्यवाही और निर्देशों को महत्व नहीं दे रहा। न्यायाधीश ने साफ टिप्पणी की कि लगभग चार वर्षों तक कोई जवाब न देना यह साबित करता है कि प्रतिवादियों को न्यायालय के आदेशों की कोई परवाह नहीं है।
अदालत ने प्रतिवादी सरकार पर 20,000 रुपये की लागत (फाइन) लगाई है। इसमें 10,000 रुपये मुख्य न्यायाधीश आपदा राहत कोष में जमा होंगे और 10,000 रुपये याचिकाकर्ता को भुगतान किए जाएंगे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यह राशि सरकार के खजाने से नहीं, बल्कि उस अधिकारी के वेतन से काटकर वसूली जाएगी, जो जवाब दाखिल करने में देरी का जिम्मेदार है।
अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) ने अदालत को बताया कि 1 दिसंबर 2021 के बाद यह मामला कोर्ट में सूचीबद्ध ही नहीं हुआ था। इस कारण जवाब दाखिल करने में देरी हुई। लेकिन अदालत ने इस सफाई को स्वीकार नहीं किया और कहा कि चाहे मामला सूचीबद्ध हो या न हो, प्रतिवादियों के पास जवाब दाखिल करने के लिए पर्याप्त समय और अवसर मौजूद था।
कड़ा रुख अपनाने के बावजूद हाईकोर्ट ने प्रतिवादी विभाग को चार सप्ताह का अंतिम मौका देते हुए जवाब दाखिल करने की अनुमति दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगली बार किसी भी प्रकार की देरी को गंभीरता से लिया जाएगा।
मामले की अगली सुनवाई अब 22 दिसंबर को होगी, जहां कोर्ट यह देखेगा कि राज्य सरकार ने जवाब दाखिल किया या नहीं। वहीं, लोगों का कहना है कि यह मामला एक बार फिर यह दर्शाता है कि कई सरकारी दफ्तर अदालतों के नोटिसों और कार्यवाही को गंभीरता से नहीं लेते। न्यायाधीश का यह निर्णय अन्य विभागों के लिए भी कड़ा संदेश है कि अदालत की अवहेलना बर्दाश्त नहीं की जाएगी।