#विविध
July 5, 2025
हिमाचल फ्लड : घर-बार सब कुछ बह गया, हर तरफ पसरा मातम; मलबे में जिंदगी तलाश रहे लोग
किसी की बह गई पूरी कमाई- किसी के बागीचे, घर सब गया
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मंडी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की सराज घाटी इन दिनों सदी की सबसे भीषण त्रासदी का सामना कर रही है। 30 जून की रात और 1 जुलाई की सुबह बादल फटने की घटनाओं ने घाटी को तबाही के ऐसे दौर में धकेल दिया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
भारी बारिश, भूस्खलन, मलबा और उफनते नालों ने गांव के गांव तबाह कर दिए हैं। अब यहां सिर्फ मलबे के ढेर, टूटे सपने और बह रहे आंसुओं की कहानियां बाकी हैं। बादल फटने से हुई तबाही ने लोगों का सब कुछ खत्म कर दिया है।
बगस्याड के शरण गांव का पूरा भूगोल बदल चुका है। गांव के लोग अपना घर, खेत, बाग-बकरी, सब कुछ खो चुके हैं। जलप्रलय की रात कोई पहाड़ी की चोटी पर भागा, कोई जंगलों में छिपा। गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे-सब जान बचाने की जद्दोजहद में थे।
मलबे में दबी 19 वर्षीय तनुजा गले तक फंस गई थी। चीखने की आवाज किसी तक नहीं पहुंची, लेकिन एक लकड़ी का सहारा बनकर उसे बाहर निकाल लाया। अब तनुजा किसी राहत शिविर में है—जिंदा जरूर है, पर टूट चुकी है।
इस आपदा में ITI और सीनियर सेकेंडरी स्कूल को भी भारी नुकसान हुआ है। 100 से अधिक लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। ये लोग अब न सिर्फ अपने घर, बल्कि अपने भविष्य को भी ढूंढ रहे हैं। 29 वर्षीय यमुना देवी गर्भवती हैं और अब स्कूल में बने अस्थायी शिविर में रातें गुजार रही हैं। उनके पास न भोजन है, न कपड़े।
26 वर्षों तक देश की सेवा कर चुके जोगेंद्र सिंह का मकान बाढ़ में बह गया। अब उनके पास सिर्फ एक गाय बची है—घास देने की ज़मीन भी बह गई है। पत्नी जयवंती रोते हुए कहती हैं, "अब तो खाने को कुछ नहीं बचा, घर नहीं, काम नहीं, और उम्मीद भी डगमगाने लगी है।"
भरतराज और उनके भाई आठ गायों के सहारे परिवार पाल रहे थे। अब न खेत बचा, न चारा। वे सरकार से अपील कर रहे हैं कि बच्चों की पढ़ाई का खर्चा कम से कम सरकार उठाए। नेत्र सिंह, जो बगस्याड बाजार में मीट की दुकान चलाते थे, उनकी दुकान और 60,000 रुपये का सामान सब बह गया। अब वे मजबूरी में मजदूरी करने को तैयार हैं।
फार्मेसी कॉलेज में आउटसोर्स कर्मचारी चमन ने 12 लाख का कर्ज लेकर पॉलीहाउस और सेब के बागीचे लगाए थे। अब पॉलीहाउस भी चला गया, खेत भी और नौकरी से वेतन भी कई महीनों से नहीं मिला। उनके पास अब कर्ज चुकाने का कोई साधन नहीं है।
खानागी गांव की कृष्णा और चंद्रशा कुमारी सड़क न होने के कारण रस्सी के सहारे खड्ड पार कर राहत लेने पहुंची हैं। गांव में न पानी है, न बिजली। रिश्तेदारों के घरों में शरण लेनी पड़ रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक जयराम ठाकुर ने कहा कि सराज विधानसभा क्षेत्र 30 साल पीछे चला गया है। अब तक 30 लोग लापता हैं, 9 की मौत की पुष्टि हो चुकी है, 204 घर पूरी तरह तबाह हैं और 400 से अधिक लोग राहत शिविरों में दिन काट रहे हैं। उनका कहना है कि कई जगह अब भी बिजली और पानी बहाल नहीं हो पाए हैं। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री से संपर्क कर स्थिति की जानकारी दी है, लेकिन खराब मौसम के कारण हेलिकॉप्टर राहत कार्य में बाधित हैं।
मंडी जिले में पिछले चार दिन के सर्च ऑपरेशन में 14 शव मिल चुके हैं और 31 लोग अब भी लापता हैं। राहत की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संचार और सड़कें ठप हैं। अब सराज घाटी सिर्फ एक घाटी नहीं, एक चीखती हुई पीड़ा बन गई है। इस आपदा ने न सिर्फ घर और खेत उजाड़े हैं, बल्कि लोगों के सपनों, आत्मबल और विश्वास को भी झकझोर कर रख दिया है।सरकारी मदद सीमित है, और जिनके पास कुछ बचा है, वे खुद मददगार बनने की कोशिश कर रहे हैं।