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July 5, 2025
हिमाचल में बन रही झीलों और पर्यटकों की इस गलती के कारण फट रहे बादल- जानें पूरी खबर
हर साल बढ़ रही हिमाचल में पर्यटकों की बीढ़
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शिमला। हिमाचल प्रदेश के पहाड़, जो कभी शुद्ध वायुमंडल और शांत वातावरण के लिए जाने जाते थे, अब प्राकृतिक आपदाओं का नया केंद्र बनते जा रहे हैं। हर साल मानसून के दौरान बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं और इसके पीछे इंसानी गतिविधियों से उपजा जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण बनता जा रहा है।
पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु के अनुसार, राज्य की झीलों और बांधों की तलहटी में जमा होते जैविक अपशिष्ट बिना ऑक्सीजन के सड़ते हैं, जिससे मीथेन गैस का भारी मात्रा में उत्सर्जन होता है।
यह मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से करीब 8 गुना अधिक घातक होती है और वातावरण को गर्म करने में सबसे बड़ा योगदान देती है। मीथेन का यह बढ़ता प्रभाव झीलों के आसपास के सूक्ष्म पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है, जिससे अचानक और तीव्र वर्षा की घटनाएं यानी 'क्लाउडबर्स्ट' हो रही हैं।
इसके अलावा, हिमाचल के पर्यटन स्थलों में साल दर साल बढ़ रही वाहनों की संख्या भी ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को बढ़ा रही है। ये गैसें मैदानी इलाकों में आसानी से फैल जाती हैं, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में घाटियों के भीतर फंस जाती हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर तापमान में अत्यधिक वृद्धि होती है। यह स्थिति बादलों को असामान्य ढंग से संकेंद्रित कर, अचानक वर्षा का कारण बनती है।
डॉ. मनमोहन सिंह, जो हिमाचल के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी रहे हैं, बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवाष्पीकरण की गति तेज हो गई है। इससे भारी जलवाष्प वाले विशाल 'क्यूम्यलोनिम्बस' बादल बनते हैं, जो गरज-चमक के साथ विनाशकारी बारिश लाते हैं।
बंगाल की खाड़ी से आने वाली पूर्वी हवाएं जब इन बादलों को हिमालय की ऊंचाइयों की ओर धकेलती हैं, तो ये बादल वहीं फंस जाते हैं और एक ही स्थान पर मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है। जब किसी इलाके में एक घंटे में 100 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है, तो यही स्थिति "बादल फटना" कहलाती है।
उपमन्यु मानते हैं कि इस विनाश को रोकने के लिए हिमाचल में अब टिकाऊ और स्थानीय भूगोल के अनुसार विकास नीति अपनानी होगी। उनके अनुसार, जहां एक ओर रोप-वे जैसे विकल्प सार्वजनिक परिवहन के लिए सुलभ और पर्यावरण हितैषी हो सकते हैं, वहीं दूसरी ओर चार लेन सड़कों के बजाय टिकाऊ दो लेन सड़कों को तरजीह देना चाहिए।
इसके साथ ही नदियों के किनारे अनियंत्रित भवन निर्माण, अत्यधिक ऊंची इमारतें और भूमि की सहनशीलता से अधिक निर्माण कार्यों पर रोक जरूरी है। साथ ही, स्थानीय क्षेत्रों में साइकिल जैसे पारंपरिक और पर्यावरण अनुकूल साधनों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
हिमाचल की नाजुक पारिस्थितिकी को बचाने के लिए अब दिखावटी विकास नहीं, बल्कि समझदारी से की गई योजना की जरूरत है, वरना आने वाले वर्षों में बादल फटना और भूस्खलन आम घटनाएं बन जाएंगी और इसके दुष्परिणाम सिर्फ पर्यटकों को नहीं, बल्कि यहां की स्थायी आबादी को सबसे अधिक झेलने पड़ेंगे।