#विविध
March 24, 2025
हिमाचल में पोती ने 80 साल की दादी को थमाई कलम, पढ़ना- लिखना सीख सहेली संग दिया पेपर
पोती ने हौसला बढ़ाया- दोनों बुजुर्ग महिलाओं ने पूरे आत्मविश्वास के साथ दी परीक्षा
शेयर करें:
बिलासपुर। सीखने की कोई उम्र नहीं होती, हौसला बुलंद हो तो राहें नहीं रोकी जाती। 80 साल की उम्र में जब लोग आमतौर पर आराम करते हैं, अपनी जिंदगी के अनुभवों को अगली पीढ़ी को सौंपते हैं, तब एक दादी ने नया सपना देखा—साक्षर बनने का। यह कहानी है एक ऐसी दादी की, जिन्होंने अपने जीवन के इस पड़ाव पर भी शिक्षा प्राप्त करने की ठानी और अपनी पोती की मदद से परीक्षा दी। यह सिर्फ एक परीक्षा नहीं थी, बल्कि उनके हौसले, संकल्प और इच्छाशक्ति का एक जीता-जागता प्रमाण थी।
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित छोटे से गांव नोगा में रहने वाली 80 वर्षीय रामजानी हमेशा से पढ़ना-लिखना चाहती थीं, लेकिन हालात ने उन्हें यह अवसर नहीं दिया। उनका बचपन कठिनाइयों में बीता और जवानी जिम्मेदारियों में। मगर उनकी पोती किरण ने जब उनकी यह इच्छा जानी, तो उन्होंने ठान लिया कि दादी को साक्षर बनाकर ही रहेंगी।
JBT कर चुकी किरण रोज अपनी दादी को अक्षर ज्ञान कराना, पहाड़े याद कराना और छोटे-छोटे वाक्य पढ़ने की प्रयास करवाने लगी। दादी भी पूरी लगन से सीखने लगीं। वहीं, जब जिले में निरक्षर लोगों को साक्षर करने के लिए परीक्षा करवाई गई- तो किरण ने अपनी दादी का भी पंजीकरण करवा दिया।
रामजानी ने 2000 निरक्षरों समेत इस परीक्षा में भाग लिया। किरण ने रामजानी का हौसला बढ़ाया तो उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा दी। बताया जा रहा है कि उत्तर लिखते समय रामजानी किसी बच्चे की तरह खुश हो रही थीं- मानो उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी जीत हासिल कर ली हो। इस परीक्षा को पास करने के बाद रामजानी साक्षर लोगों में गिनी जाएंगी।
रामजानी के बताया कि उनके घर पर सभी पढ़े-लिखे हैं, लेकिन जीवन में उन्हें कभी पढ़ने का मौका नहीं मिला। मगर किरण के प्रयासों के कारण अब वो भी पढ़े-लिखे लोगों में गिनी जाएंगी। रामजानी ने बताया कि किरण ने सिर्फ मुझे ही नहीं पड़ोस में रहने वाली 73 साल की चिंता देवी को भी परीक्षा के लिए पढ़ाई करवाई है।
उधर, चिंता देवी का कहना है कि उनके समय में बहुत कम लोग पढ़ाई किया करते थे। माहौल ऐसा था कि लड़कियों को घर के कामकाज सीखाना पढ़ाने से ज्यादा जरूरी समझा जाता था। अगर उन्हें उस समय पर पढ़ाया-लिखाया जाता तो वो भी आज जीवन में कुछ बन गई होती। अब किरण की मदद से उन्हें पढ़ने का मौका मिला है- जिसके लिए वो बेहद खुश और आभारी हैं।
जानकारी देते हुए उप निदेशक प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर नरेश कुमारी ने बताया कि ये परीक्षा प्रदेश के हर जिले के राजकीय स्कूलों में आयोजित की गई थी। यह परीक्षा 150 अंकों की थी और इसके लिए 3 घंटे का समय दिया गया था। इस परीक्षा में पढ़ने, लिखने और संख्याओं के ज्ञान के आधारभूत प्रश्न आए थे। इसमें उत्तीर्ण होने के लिए सभी विषयों में 17 अंक हासिल करना आवश्यक होगा।