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September 26, 2025
कुल्लू दशहरा में 365 साल बाद ये देवता साहिब होंगे शामिल, 200 KM की पैदल यात्रा करेंगे तय
देवता साहिब की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और आपदाओं से रक्षा होती है
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कुल्लू। हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में इस साल एक ऐतिहासिक पल जुड़ने जा रहा है। उपतहसील नित्थर (जिला किन्नौर/कुल्लू सीमा क्षेत्र) के आराध्य देवता कुईकंडा नाग देवता करीब 365 साल बाद अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे में शिरकत करेंगे।
यह फैसला देवता के आदेश पर लिया गया है, जिसकी घोषणा वीरवार को तांदी मंदिर प्रांगण में आयोजित बैठक के दौरान हुई। देवता साहिब कुल्लू दशहरा में शामिल होने के लिए करीब 200 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करेंगे।
परंपरा के अनुसार इस यात्रा में नित्थर क्षेत्र के हर परिवार से कम से कम एक सदस्य का शामिल होना अनिवार्य किया गया है। यह यात्रा केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि सामाजिक एकजुटता और परंपरा के सम्मान की मिसाल भी बनेगी। कुल्लू दशहरा में यह देवता सबसे दूर से पहुंचने वाले देवता के रूप में दर्ज होंगे।
कुल्लू दशहरा की शुरुआत सन् 1660 में राजा जगत सिंह ने की थी। उसी समय से 365 देवी-देवताओं की शिरकत की परंपरा भी आरंभ हुई। बुजुर्ग बताते हैं कि उस दौर में भी कुईकंडा नाग देवता दशहरे में पहुंचे थे, लेकिन प्रौढ़ (प्रवेशद्वार) से गुजरने के दौरान उन्हें रोकने और नीचे से गुजारने की कोशिश की गई।
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इससे देवता अप्रसन्न हो गए और उन्होंने दशहरे में दोबारा शामिल न होने का आदेश दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही थी और पिछले तीन सदियों से अधिक समय से देवता कुल्लू नहीं पहुंचे।
इस बार तांदी गांव में आयोजित झाड़े (धार्मिक अनुष्ठान) के दौरान गुर विनोद ठाकुर ने देवता साहिब के आदेश सुनाए। देवता ने स्पष्ट निर्देश दिया कि अबकी बार कुल्लू दशहरे में शिरकत की जाए। मंदिर समिति की बैठक में इस आदेश को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।
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मंदिर कमेटी के कारदार कमलेश रावत ने बताया कि देवता साहिब के आदेश सर्वोपरि हैं। देव समाज ने मिलकर तय किया कि 29 सितंबर को कुईकंडा नाग देवता का दशहरे के लिए प्रस्थान होगा।
कुईकंडा नाग देवता की मान्यता केवल नित्थर क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि सिरीगढ़, नरेणगढ़ और हिमरीगढ़ सहित आसपास के इलाकों में लाखों लोग इन्हें अपने आराध्य देवता मानते हैं। क्षेत्र के लोग मानते हैं कि देवता साहिब की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और आपदाओं से रक्षा होती है। यही कारण है कि उनके दशहरे में जाने के फैसले को स्थानीय लोग किसी बड़े उत्सव से कम नहीं मान रहे।
देवता कुईकंडा नाग का कुल्लू दशहरे में पहुंचना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रदेश की लोक संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक आस्था का अनूठा संगम भी होगा। 365 साल बाद किसी देवता का दशहरे में जाना हिमाचल की देव संस्कृति की जीवंतता और परंपराओं की गहराई को दर्शाता है।