#विविध
October 5, 2025
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव : दिन में 4 बार हो रहा भगवान रघुनाथ का श्रृंगार, मिलने पहुंच रहे कई देवता
सैकड़ों देवी-देवता भगवान रघुनाथ से भेंट कर रहे हैं
शेयर करें:
कुल्लू। देवभूमि हिमाचल का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव इस समय अपने चरम पर है। भगवान रघुनाथ की भव्य उपस्थिति से ढालपुर मैदान आस्था और भक्ति का केंद्र बन चुका है।
घाटी के कोने-कोने से आए सैकड़ों देवी-देवता इस मेले में अपने अधिष्ठाता देव भगवान रघुनाथ के आगे शीश नवाने पहुंचे हैं। दिन-रात चलने वाली पूजा-अर्चना, आरती और भजन-कीर्तन के स्वर पूरे कुल्लू में भक्ति का अनूठा वातावरण बना रहे हैं।
ढालपुर मैदान में स्थापित भगवान रघुनाथ का अस्थायी शिविर हर दिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ से गूंजता है। श्रद्धालु सुबह से ही दर्शन के लिए कतारों में खड़े दिखाई देते हैं। इस शिविर में भगवान रघुनाथ के साथ माता सीता, भगवान हनुमान, शालिग्राम और नरसिंह भगवान की भी विधिवत पूजा की जा रही है।
महिलाएं समूहों में भजन-कीर्तन करती हैं, वहीं दूरदराज़ से आए ग्रामीण देवी-देवता अपने दल-बल सहित भगवान रघुनाथ के समक्ष नतमस्तक हो रहे हैं। कुल्लू दशहरा में भगवान रघुनाथ के श्रृंगार की परंपरा विशेष मानी जाती है। प्रतिदिन भगवान का चार बार श्रृंगार और पूजा-अर्चना की जाती है-
हर बार भगवान को अलग-अलग प्रकार के रेशमी वस्त्र, फूलों की मालाएं और स्वर्ण-रजत आभूषण पहनाए जाते हैं। भगवान रघुनाथ के कारदार दानवेंद्र सिंह के अनुसार, “दशहरा उत्सव के सातों दिनों में भगवान को अलग-अलग रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं, जिनका विशेष धार्मिक महत्व होता है और इन वस्त्रों को कुल्लू के राजपरिवार द्वारा विधिवत तैयार करवाया जाता है।”
हर दिन वस्त्रों की पूजा और शुद्धिकरण के बाद ही उन्हें भगवान को अर्पित किया जाता है। वस्त्र बदलने का यह क्षण श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है, और इस दौरान शिविर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
प्रातःकाल में मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह की अगुवाई में भगवान रघुनाथ का स्नान विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ किया जाता है। दूध, दही, शहद, घी, पंचामृत, तुलसी और गंगाजल से भगवान का अभिषेक किया जाता है।
इसके बाद भगवान को चंदन, कुमकुम का तिलक लगाकर रेशमी वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। पुजारियों द्वारा धूप, दीप, पुष्प और ध्रुव अर्पित किए जाते हैं, जबकि भक्तजन "जय श्री रघुनाथ!" के जयघोष से वातावरण को गुंजायमान करते हैं।
दशहरा उत्सव में घाटी के विभिन्न भागों से आए सैकड़ों देवी-देवता भगवान रघुनाथ से भेंट कर रहे हैं। यह देव मिलन परंपरा कुल्लू दशहरा की सबसे विशिष्ट पहचान है। ढालपुर मैदान में इन देवताओं की पालकियाँ एक साथ विराजमान होती हैं, जहां ढोल-नगाड़ों और करनालों की गूंज वातावरण को अलौकिक बना देती है।
हर दिन भगवान के लिए विशेष भोग तैयार किया जाता है। प्रसाद में खीर, फल, और सूखे मेवे प्रमुख होते हैं। भोग अर्पण के बाद भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है। यह परंपरा भक्त और भगवान के बीच आत्मीय संबंध का प्रतीक मानी जाती है।
कुल्लू दशहरा सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि देव संस्कृति की जीवंत मिसाल है। यहां धर्म, परंपरा और लोक आस्था का अद्भुत संगम दिखाई देता है। सात दिनों तक भगवान रघुनाथ का श्रृंगार, आरती और देव मिलन कार्यक्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी पीढ़ियों तक स्मरणीय रहते हैं।