#विविध
March 10, 2025
हिमाचली हीरो: 19 साल तक चिट्टे की गिरफ्त में रहने वाला आज सिखा रहा है- नशा कैसे छोड़ें
बचपन में गुटखे से शुरू हुआ नशे का सफर, अब चला रहा नशा मुक्ति केंद्र
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शिमला। हिमाचल का एक युवा जिसका बचपन में गुटखे से शुरू हुआ नशे का सफर, जो वक्त के साथ कब चिट्टे (हेरोइन) तक पहुंच गया उसे पता तक नहीं चला। उस युवा की जिंदगी में एक दौर ऐसा भी आया जब सुबह से शाम तक हर नशा उसके लिए आम बात बन गई थी। मगर एक दिन उसने न केवल इस दलदल से बाहर निकलने की ठानी, बल्कि अब वे सैकड़ों लोगों को इस लत से छुटकारा दिलाने का काम कर रहे हैं।
जी हां- यह कहानी नहीं बल्कि एक हकीकत है शिमला के नौजवान आशीष की, जिनकी प्रेरणादायक यात्रा समाज के लिए एक सबक है कि इच्छाशक्ति और सही मार्गदर्शन से कोई भी नशे से बाहर निकल सकता है।
आशीष का नशे की दुनिया में कदम रखना चौथी कक्षा में गुटखा खाने से हुआ। धीरे-धीरे उन्हें सिगरेट की लत लग गई और फिर भांग और अफीम का सेवन शुरू हो गया। इसके बाद कैमिकल नशे और नशीली गोलियों का सिलसिला चला। नौवीं-दसवीं तक वे पूरी तरह नशे की लत में डूब चुके थे। कॉलेज के दौरान उन्होंने चंडीगढ़ में स्मैक लेना शुरू कर दिया, जो उनकी जिंदगी के सबसे अंधेरे दौर की शुरुआत थी।
परिवार को जब उनके नशे की आदत का पता चला, तो घर में रोज झगड़े होने लगे। माता-पिता ने उन्हें सुधारने की कोशिश की, लेकिन नशे की गिरफ्त में जा चुके आशीष के लिए यह सब मायने नहीं रखता था। पैसे जुटाने के लिए उन्होंने कई बहाने बनाए—कभी कपड़ों के लिए, कभी किताबों के लिए। धीरे-धीरे परिवार और समाज ने उन्हें दरकिनार करना शुरू कर दिया। रिश्तेदारों ने दूरी बना ली, और मोहल्ले में उनकी पहचान एक 'नशेड़ी' के रूप में होने लगी।
2010 में पहली बार आशीष को नशा मुक्ति केंद्र भेजा गया। वहां उन्होंने देखा कि नशा छोड़ चुके लोगों का ‘रिकवरी बर्थडे’ मनाया जाता है, जहां उनके संघर्ष को सराहा जाता है। इसी मौके ने उनके मन में यह विचार जन्म दिया कि वे भी एक दिन इस दलदल से बाहर निकलकर सम्मान की जिंदगी जिएंगे। हालांकि, नशे से पूरी तरह बाहर निकलने में उन्हें कई साल लगे। कई बार वे दोबारा नशे की ओर लौटे, लेकिन आखिरकार 2014 में उन्होंने इसे हमेशा के लिए छोड़ दिया।
नशे से बाहर निकलने के बाद आशीष ने तय किया कि वे दूसरों की मदद करेंगे। 2015 में उन्होंने शिमला के शोघी में 'सनराइज रिबर्थ' नाम से नशा मुक्ति केंद्र खोला। यह शुरुआत महज 9-10 लोगों के साथ हुई, लेकिन आज उनके केंद्र में 22 से ज्यादा लोग नशा छोड़ने के लिए भर्ती हैं। अब तक वे 500 से ज्यादा लोगों को इस दलदल से निकाल चुके हैं।
उनका कहना है कि नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती लोगों के लिए शुरुआती 5-6 दिन सबसे मुश्किल होते हैं। इस दौरान उनका शरीर तड़पता है, उन्हेंWithdrawal symptoms (नशे की लत छूटने के प्रभाव) झेलने पड़ते हैं। परिवार के लोग कई बार इस प्रक्रिया को देखकर डर जाते हैं और आरोप लगाने लगते हैं, लेकिन यह दौर बीतने के बाद व्यक्ति ठीक होने लगता है।
आशीष के केंद्र में रह चुके कई लोगों ने अब समाज में अपनी नई पहचान बना ली है। जैसे, आहान (बदला हुआ नाम) खुद एक समय ड्रग एडिक्ट थे, लेकिन अब वे काउंसलर बनकर दूसरों को नशा छोड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसी तरह, रौनक और अभय जैसे कई युवाओं ने नशे को अलविदा कह दिया और एक नई जिंदगी शुरू की।
आशीष कहते हैं, "अगर आपका बच्चा नशे में पड़ गया है, तो परिवार को हार नहीं माननी चाहिए। जब तक वह पूरी तरह इस लत से बाहर न आ जाए, तब तक उसका साथ देना जरूरी है।" वे यह भी सलाह देते हैं कि नशा मुक्ति केंद्र चुनते समय उसकी जांच-पड़ताल जरूर करें क्योंकि कुछ केंद्रों में मानकों का पालन नहीं होता।
नशे की गिरफ्त में आ चुके युवाओं को आशीष यही कहते हैं कि वे खुद को एक मौका दें। इलाज कराएं, सही मार्गदर्शन लें और खुद पर भरोसा रखें। नशा कोई ‘असंभव’ लत नहीं है, इससे बाहर निकला जा सकता है। उनका जीवन इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है। बहरहाल, आशीष जैसे लोगों की कहानियां बताती हैं कि नशे की लत से बाहर निकलना मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। इच्छाशक्ति व सही मार्गदर्शन और समाज के सहयोग से यह जंग जीती जा सकती है।