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September 16, 2025
हिमाचल: KCC बैंक ने होटल कारोबारी का माफ कर दिया 24 करोड़ लोन, OTS पॉलिसी पर उठे सवाल
सुधीर शर्मा का आरोप कांग्रेस के करीबियों को दिया गया लाभ
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धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार एक बार फिर विवादों में घिरती नजर आ रही है। अकसर सवालों के घेरे में रहने वाले कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक ने कांग्रेस सरकार के एक करीबी को फायदा पहुंचाने के लिए 24 करोड़ का लोन माफ कर दिया है। मामले को धर्मशाला के भाजपा विधायक सुधीर शर्मा ने भी उठाया है और कहा है कि कांग्रेस सरकार ने केसीसी बैंक केा लूट का एटीएम बना दिया है।
दरअसल कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक ने एक नामी होटल कारोबारी को 24 करोड़ की राहत प्रदान की है। बैंक ने नियमों को ताक पर रख कर वन टाइम सेटलमेंट (OTS) के ज़रिए करीब 24 करोड़ रुपये का लोन माफ कर दिया है। इस पूरे मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रभावशाली रसूखदारों की भूमिका को लेकर गहरी आशंका जताई जा रही है।
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बैंकिंग नियमों को दरकिनार कर होटल के लोन खाते को ओटीएस पॉलिसी के तहत सेटल किया गया, जबकि न तो सरफेसी एक्ट के तहत कोई नोटिस जारी हुआ, न ही संपत्ति पर कब्ज़ा लिया गया और न ही कोई सार्वजनिक नीलामी की गई। जानकारों का कहना है कि यदि होटल की संपत्ति की उचित नीलामी होती, तो इसकी कीमत इससे कहीं अधिक मिल सकती थी, जिससे बैंक को नुकसान नहीं होता।
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सूत्रों के मुताबिक, कांगड़ा जिला के पालमपुर के एक होटल की मालिक महिला पर बैंक का लगभग 45 करोड़ रुपये का कर्ज था, जिसमें से उन्होंने करीब 21 करोड़ रुपये अदा किए और शेष 24 करोड़ सीधे माफ कर दिए गए। सवाल यह उठता है कि जब आम कर्जदारों को ओटीएस पॉलिसी का लाभ नहीं दिया जा रहा है, तो एक रसूखदार को यह विशेष छूट किस आधार पर दी गई।
इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब भाजपा विधायक सुधीर शर्मा ने खुलकर आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ने केसीसी बैंक को लूट की मशीन बना दिया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सुक्खू के कार्यकाल में कांग्रेस के करीबी होटल व्यवसायियों को बैंक के माध्यम से बड़ा आर्थिक लाभ पहुंचाया जा रहा है। सुधीर शर्मा का कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी बैंक के माध्यम से सत्ता से जुड़े प्रभावशाली लोगों को बड़े लोन दिए गए हैं] जिन्हें बाद में राजनीतिक दबाव के चलते माफ कर दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बैंक में उच्च अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं की मिलीभगत से आम जनता की मेहनत की कमाई को चंद लोगों को फायदा पहुंचाने में लुटाया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, बैंक ने पूर्व में बंद हो चुकी ओटीएस नीति को इस विशेष मामले के लिए फिर से ‘एक्सटेंड’ कर दिया, जबकि आम जनता को ऐसी कोई राहत नहीं दी जा रही थी। यह स्पष्ट संकेत देता है कि इस पूरे मामले में कोई न कोई "ऊपरी आदेश" शामिल था। एक ओर आम लोग अपने छोटे-मोटे लोन की किश्त चुकाने में परेशान हैं, वहीं दूसरी ओर करोड़ों का बकाया बिना पारदर्शी प्रक्रिया के सीधे माफ कर दिया जा रहा है। इससे बैंकिंग प्रणाली की साख पर सवाल खड़े हो गए हैं।
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी बैंक को यदि डिफॉल्ट खाते से रिकवरी करनी होती है, तो उसे पहले कानूनी प्रक्रिया अपनानी होती है – जिसमें सरफेसी एक्ट के तहत नोटिस देना, संपत्ति पर कब्जा लेना और नीलामी करना शामिल होता है। लेकिन इस मामले में इन सभी प्रक्रियाओं को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया, जिससे यह पूरा प्रकरण संदिग्ध बन गया है।
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बैंक के कुछ अधिकारी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि अन्य इसे "नीतिगत निर्णय" बता रहे हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि इस स्तर का निर्णय बिना शीर्ष नेतृत्व की मंजूरी के संभव नहीं है। अब यह मामला राज्य स्तर पर राजनीतिक बहस का विषय बन चुका है और उम्मीद की जा रही है कि इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग जोर पकड़ेगी।