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July 16, 2025

सेब से लदे पेड़ों पर आरी चलाने से शिक्षा मंत्री नाखुश, CM सुक्खू को याद दिलाई वीरभद्र सरकार की नीति

वीरभद्र सिंह ने पांच बीघा तक की जमीन पर पेड़ों को नहीं काटने की बनाई थी नीति

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Virbhadra singh govt Policy

शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की ऊपरी पहाड़ियों में वन विभाग ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर अभियान चलाकर सैकड़ों सेब के पेड़ों को काटना शुरू कर दिया है। यह कार्रवाई न्यायालय के आदेशों के तहत की जा रही है, लेकिन इससे किसानों बागवानों में पर्यावरणविद्धों में भारी नाराजगी देखी जा रही है। बागवान संघ ने इस फैसले के विरोध में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की चेतावनी दी है। वहीं अब सुक्खू सरकार के मंत्री भी इस कार्रवाई से खासे नाराज दिखे हैं। 

मुख्यमंत्री से मिलकर उठाएंगे मुद्दा

प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री और जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र के विधायक रोहित ठाकुर ने इस कार्रवाई पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि वे स्वयं एक बागवानी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और छोटे किसानों की पीड़ा को भली-भांति समझते हैं। रोहित ठाकुर ने स्पष्ट किया कि वह इस विषय को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के समक्ष उठाएंगे और छोटे किसानों के हितों की रक्षा के लिए कदम उठाएंगे।

 

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पूर्व सरकार की नीति का किया हवाला

रोहित ठाकुर ने 2015 की कांग्रेस सरकार की नीति का उल्लेख करते हुए बताया कि उस समय मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने फैसला लिया था कि पांच बीघा तक की जमीन पर खड़े पेड़ों को नहीं काटा जाएगा। लेकिन 2017 में सरकार बदलने के बाद यह नीति आगे नहीं बढ़ पाई। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार को भी इस दिशा में पुनर्विचार करना चाहिए, ताकि छोटे किसानों को राहत मिल सके।

 

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पेड़ों की कटाई पर उठाए सवाल

शिक्षा मंत्री ने पेड़ों की कटाई के समय पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वर्षा ऋतु का समय है, जो कि नए पौधे लगाने के लिए उपयुक्त होता है। ऐसे समय में फलों से लदे सेब के पेड़ों को काटना न केवल बागवानों के लिए आर्थिक नुकसान है, बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी गलत है। उन्होंने कहा कि सेब मंडियों में पहुंचने के लिए तैयार हैं और ऐसे समय पर पेड़ों की कटाई से किसान पूरी तरह से टूट जाएंगे।

 

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मानवीय दृष्टिकोण जरूरी

रोहित ठाकुर ने अपील की है कि सरकार को इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उन्होंने विशेष रूप से पांच बीघा से कम भूमि वाले किसानों को राहत देने की बात दोहराई। उनका कहना है कि अतिक्रमण हटाना जरूरी हो सकता है, लेकिन छोटे किसानों की आजीविका को खत्म करना न्यायसंगत नहीं है।

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