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October 2, 2025
हिमाचल : दशहरे पर परिवार में लौटी खुशियां, बहन को कई साल बाद सही-सलामत मिला भाई
मानसिक रूप से परेशान था- नहीं बता पा रहा था घर का पता
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सिरमौर। हिमाचल की वादियों में अक्सर लोग प्रकृति की शांति तलाशने आते हैं, लेकिन कभी-कभी इन्हीं रास्तों पर मानवता की कहानियां भी जन्म लेती हैं। ऐसा ही एक वाकया सिरमौर जिले के सतौन क्षेत्र में सामने आया, जहां एक बुजुर्ग व्यक्ति बेसहारा और मानसिक रूप से परेशान हालत में भटकता मिला।
कपड़े मैले थे, आंखों में दर्द और चेहरे पर खोएपन की गहरी लकीरें थीं। न नाम बता पा रहे थे, न घर का कोई पता। उसी वक्त वहां से गुजर रहे थे पांवटा साहिब के जाने-माने पत्रकार और समाजसेवी संजय कंवर।
उन्होंने तुरंत स्थिति को समझा और ठान लिया कि इस बुजुर्ग को सुरक्षित आश्रय मिलना चाहिए। आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने के लिए स्थानीय SDM से अनुमति ली गई और 4 सितंबर 2025 को संजय कंवर स्वयं अपनी गाड़ी से उस बुजुर्ग को उत्तराखंड के रुड़की स्थित “अपना घर आश्रम” पहुंचा आए।
रुड़की के शांत वातावरण और आश्रम के सेवाभाव ने मानो उस बुजुर्ग की जिंदगी को नया मोड़ दे दिया। यहां उन्हें चिकित्सकीय देखभाल और भावनात्मक सहारा मिला। धीरे-धीरे टूटे हुए स्मृति के धागे जुड़ने लगे। कुछ हफ्तों बाद उन्होंने अपना नाम बताया रमेश और साथ ही गांव जटपुरा, करनाल (हरियाणा) का पता भी साझा किया।
“अपना घर आश्रम” रुड़की के प्रभारी सन्नी चौधरी ने रमेश की पहचान और परिवार की खोज के लिए अथक प्रयास शुरू किए। आखिरकार सफलता हाथ लगी और हरियाणा में रमेश के परिवार का पता चल गया। जब फोन पर यह संदेश पहुंचा कि सालों से लापता रमेश मिल गए हैं, तो करनाल के उस घर में बरसों बाद उम्मीद और खुशी की लहर दौड़ गई।
दशहरा पर्व से ठीक एक दिन पहले, रमेश की छोटी बहन नीतू और भांजे विनोद रुड़की के “अपना घर आश्रम” पहुंचे। दरवाजे पर कदम रखते ही नीतू की आंखें बेचैनी से अपने भाई को खोजने लगीं और जब सामने रमेश दिखे, तो बरसों का इंतजार और पीड़ा आंसुओं के रूप में फूट पड़ी।
नीतू ने भाई को गले से लगाया और फूट-फूटकर रो पड़ीं। रमेश की आंखों में भी नमी थी, लेकिन इस बार वह खालीपन नहीं, बल्कि अपने परिवार को पाने की संतुष्टि और खुशी का आंसू था।
नीतू ने भावुक होकर कहा कि भाई के गुम हो जाने के बाद हमने हर जगह खोज की, लेकिन कोई पता नहीं चला। जब फोन आया कि रमेश मिल गए हैं, तो ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने हमें सबसे बड़ा उपहार दिया है।
इस पुनर्मिलन के पीछे असली भूमिका निभाई पत्रकार और समाज सेवक संजय कंवर ने। उन्होंने न केवल एक बेसहारा इंसान को आश्रय दिलाया, बल्कि उसे फिर से अपने परिवार तक पहुंचा दिया। वहीं “अपना घर आश्रम” की टीम और प्रभारी सन्नी चौधरी के प्रयास भी इस कहानी में अहम रहे। परिवार ने संजय कंवर और आश्रम प्रबंधन का हाथ जोड़कर धन्यवाद किया और कहा कि उनकी यह पहल एक सूना घर फिर से रोशन कर गई।