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May 23, 2025

हिमाचल : वर्षों से अपने ही बाल खा रही थी महिला, डॉक्टरों ने पेट से निकाले कई लंबे गुच्छे

महिला की रिपोर्ट देख परिजन-डॉक्टर सब हैरान

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Mandi News

मंडी। हिमाचल प्रदेश के नेरचौक मेडिकल कॉलेज में हाल ही में डॉक्टरों की एक टीम ने एक अत्यंत दुर्लभ और जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस सर्जरी में मानसिक रूप से अस्वस्थ एक महिला के पेट से लगभग एक फुट लंबा बालों का गोला निकाला गया, जिसने उसकी जान को खतरे में डाल दिया था।

महिला के पेट से निकला बालों का गुच्छा

यह चिकित्सा स्थिति 'ट्राइकोबेजोआर' के नाम से जानी जाती है, जिसमें व्यक्ति अपने ही बाल खाने की आदत विकसित कर लेता है – जिसे मेडिकल भाषा में 'ट्राइकोफेजिया' कहा जाता है।

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कैसे सामने आया मामला?

महिला को लम्बे समय से पेट में दर्द, अपच और लगातार उल्टी की शिकायत थी। जब परिवार द्वारा उसे नेरचौक मेडिकल कॉलेज में लाया गया, तो प्रारंभिक जांच के तहत अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन किए गए। इन जांचों में महिला के पेट में एक असामान्य वस्तु दिखाई दी, जिसने डॉक्टरों को चौंका दिया। जब इस पर विस्तृत चिकित्सीय परीक्षण किया गया, तो पता चला कि यह बालों का एक बड़ा गोला है, जो पेट में वर्षों से जमा हो रहा था।

मानसिक विकार बना कारण

इस महिला को लंबे समय से मानसिक विकार था, लेकिन परिजन इस बात से अनजान थे कि वह अपने ही बाल खा रही है। बाल पचने में असमर्थ होते हैं, इसलिए धीरे-धीरे पेट में जमा होकर एक कठोर गोले का रूप ले लेते हैं। यह स्थिति न केवल पाचन क्रिया को बाधित करती है, बल्कि समय रहते इलाज न मिलने पर जानलेवा भी साबित हो सकती है।

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सर्जरी का सफल संचालन

इस अत्यंत संवेदनशील सर्जरी का नेतृत्व डॉ. राहुल मृगपुरी और डॉ. अजय ने किया। ऑपरेशन लेप्रोस्कोपिक तकनीक के माध्यम से किया गया, जो कम चीरा लगाकर की जाने वाली आधुनिक शल्यचिकित्सा पद्धति है। इस प्रक्रिया में डॉ. श्यामली, डॉ. पंकज के साथ नर्सिंग स्टाफ चंद्र ज्योति और डिंपल ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉक्टरों की टीम ने अत्यंत सावधानी से ऑपरेशन को अंजाम दिया और महिला की जान बचाई।

मरीज अब स्थिर, मानसिक देखभाल जारी

ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा और मरीज की हालत अब स्थिर है। उसे मेडिकल कॉलेज के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में रखा गया है, जहां उसकी मानसिक स्थिति का गहन उपचार जारी है। डॉक्टरों का मानना है कि ट्राइकोफेज़िया एक गंभीर मानसिक स्थिति है, जिसका इलाज केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक स्तर पर भी होना आवश्यक है।

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समाज को संदेश

संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रजनीश शर्मा ने इस मामले को सिर्फ एक चिकित्सा घटना न मानकर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज की उदासीनता का परिणाम बताया। उन्होंने कहा, "यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम मानसिक स्वास्थ्य को कितनी गंभीरता से लेते हैं।" उन्होंने अपील की कि परिवार और समाज मिलकर मानसिक विकारों को पहचानें, उन्हें कलंक न मानें और समय रहते उचित चिकित्सा सहायता लें।

 

डॉ. शर्मा ने यह भी जानकारी दी कि इसी वर्ष फरवरी में भी एक महिला के पेट से प्लास्टिक, धातु और बाल जैसी असामान्य वस्तुएं निकाली गई थीं, जो मानसिक असंतुलन का ही परिणाम थीं। ऐसे मामलों में जल्द पहचान और समुचित मानसिक चिकित्सा से गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है।

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