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November 9, 2025

हिमाचल में बिना अनुमति के युवकों ने उठाई पालकी- नाराज हुए देवता, सिखाया सबक

हिमाचल में दैवीय चमत्कार- गंगा में बह गया एक चांदी का छत्र

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Devta Parshuram Palki

सिरमौर। देवभूमि हिमाचल की धरती पर आस्था कोई कल्पना नहीं, बल्कि जीवन का स्पंदन है। यहाँ देवी-देवताओं की उपस्थिति को लोग सिर्फ मानते नहीं, महसूस भी करते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत और रोमांचकारी प्रसंग विगत दिनों श्रीरेणुकाजी तीर्थ में देखने को मिला, जिसने श्रद्धालुओं को भक्ति और आश्चर्य दोनों में डुबो दिया।

हिमाचल में दैवीय चमत्कार

शिलाई क्षेत्र से भगवान परशुराम जी की नई निर्मित चांदी की पालकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार सबसे पहले हरिद्वार गंगा-स्नान के लिए ले जाई गई थी और इसके बाद पालकी श्रीरेणुकाजी पहुंची थी। यहां पूजा-अर्चना के उपरांत पालकी को वापस ले जाने की तैयारी चल रही थी।

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हैरान हुए सभी लोग

इसी दौरान मंदिर परिसर में वह अनोखी घटना घटी, जिसका वर्णन करते समय आज भी मौजूद लोग भावुक और विस्मित हो जाते हैं। धार्मिक परंपरा के अनुसार पालकी को उठाने से पूर्व मंदिर भंडारी की अनुमति आवश्यक होती है।

बिना अनुमति उठाई पालकी

भंडारी पहले स्वयं पालकी को स्पर्श कर देव शक्ति की स्वीकृति सुनिश्चित करते हैं, फिर ही पालकी श्रद्धालुओं को सौंपी जाती है। लेकिन इस बार भीड़ और उत्साह में दो युवकों ने बिना अनुमति पालकी को कंधों पर उठा लिया।

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युवकों के कंधों पर चिपकी पालकी

बस यहीं से दिव्य शक्ति का वह स्वरूप सामने आया जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया। जिन युवकों ने पालकी उठाई, उन्हें कुछ समझ आए उससे पहले पालकी मानो उनके कंधों से चिपक गई। वे उसे उतारने का प्रयास करते रहे, लेकिन उनके हाथ पालकी से अलग ही नहीं हो पाए।

इधर-उधर घूमाती रही युवक

इसके विपरीत पालकी मानो स्वयं संचालित होने लगी। दोनों युवक मंदिर परिसर में आगे-पीछे, दाएं-बाएं, तेज गति से भागते रहे। श्रद्धालु, पुजारी, देवगूर और भंडारी सब स्तब्ध रह गए। करीब 15 मिनट तक यह दृश्य बिना रुके चलता रहा।

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कई बार झुक गई पालकी

कई बार पालकी लगभग 45 डिग्री के कोण पर झुक गई, फिर भी न कंधे छूटे, न संतुलन बिगड़ा। श्रद्धालु यह सब मौन विस्मय में देख रहे थे, मानो स्वयं किसी दिव्य शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हों।

देवगुरु में जागरण होने पर शांत हुई शक्ति

पुजारी और भंडारी ने बार-बार प्रार्थना की। क्षमा याचना की। पर शक्ति का संचालन तब तक नहीं रुका, जब तक देवगुरु में परशुराम का जागरण व्यक्त नहीं हुआ। देवगुरु के माध्यम से देव वाणी आई और उसके बाद पालकी धीरे-धीरे शांत होकर स्थिर हो गई। वातावरण में भक्ति की घनगर्जी ध्वनि उठी- जय परशुराम।

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हरिद्वार में भी पहले हुआ था एक संकेत

गंगा स्नान के समय पालकी में लगे चांदी के दो छत्रों में से एक छत्र गंगा में बह गया था। भंडारी का मानना है कि यह गंगा मैया द्वारा स्वीकृति और भेंट का संकेत था। श्रद्धालुओं के अनुसार त्रुटि के बाद श्रीरेणुकाजी में दिखाई दी शक्ति उसी परंपरा के महत्व को पुनः याद दिलाने आई।

विद्वानों और स्थानीय मान्यता का संकेत

जानकारों का मत है कि देवपालकी केवल शारीरिक भार नहीं, बल्कि भक्ति, अनुशासन और शक्ति का स्वरूप है। परंपरा टूटती है तो शक्ति प्रतिक्रिया करती है और इस घटना ने यह बात पुनः पुष्टि की है।

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