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September 12, 2025

सीएम सुक्खू ने मोदी सरकार से मांगे 50 हजार करोड़, आपदा राहत से अलग होगा ये फंड; जानें

हिमाचल के पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक मजबूती के लिए सीएम की बड़ी पहल

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CM Sukhu modi green fund

नई दिल्ली/शिमला। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू पिछले तीन दिन से दिल्ली में डटे हुए है। सीएम सुक्खू केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर आपदा ग्रस्त हिमाचल की मदद और राजस्व घाटा अनुदान के मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे है। इस सब के बीच अब सीएम सुक्खू ने केंद्र की मोदी सरकार से एक और बड़ी मांग कर दी है। सीएम सुक्खू ने केंद्र की मोदी सरकार से 50 हजार करोड़ की मांग की है। बड़ी बात यह है कि यह राशि उन्होंने हिमाचल में आई प्राकृतिक आपदा के लिए नहीं मांगी है।

सीएम सुक्खू ने क्यों मांगा 50 हजार करोड़

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्र सरकार से हिमाचल प्रदेश  के लिए 50,000 करोड़ रुपये का एक अलग ग्रीन फंड सालाना देने की भी अपील की है। सीएम सुक्खू ने राज्य की पर्यावरणीय संवेदनशीलता और वित्तीय चुनौतियों को केंद्र के समक्ष मजबूती से रखते हुए 50,000 करोड़ रुपये के विशेष ग्रीन फंड की मांग की है।

 

यह मांग उन्होंने नई दिल्ली में 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ अरविंद पनगड़िया से मुलाकात के दौरान रखी। इस भेंट में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह फंड किसी प्राकृतिक आपदा राहत के लिए नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील पहाड़ी राज्य के सतत विकास और हरित संरक्षण प्रयासों के लिए आवश्यक है।

 

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राज्य की हकीकत को समझे केंद्र 

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य, जहां 67 प्रतिशत से अधिक भूमि वन क्षेत्र में आती है, वहां राजस्व जुटाने की सीमाएं हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को सीमित संसाधनों के बावजूद संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाना होता है। ऐसे में राज्य की पर्यावरणीय भूमिका को पहचानते हुए केंद्र को हिमाचल के लिए एक अलग ग्रीन फंड बनाना चाहिए, जिससे हरित क्षेत्र के संरक्षण और आपदाओं की रोकथाम के लिए दीर्घकालिक निवेश किया जा सके।

 

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क्या है 50,000 करोड़ रुपये के 'ग्रीन फंड' का मकसद

सीएम सुक्खू ने स्पष्ट किया कि यह ग्रीन फंड राज्य में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों, वन्य संपदा के संरक्षण, पर्यावरणीय क्षति की भरपाई और सतत विकास योजनाओं में निवेश के लिए होगा। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यह फंड विशेष केंद्रीय सहायता या एक समर्पित योजना के तहत हर वर्ष प्रदान किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह रकम किसी आपदा राहत या आकस्मिक घटना के लिए नहीं, बल्कि लंबे समय से पर्यावरण की रक्षा कर रहे हिमाचल जैसे राज्यों के सतत योगदान के सम्मान और समर्थन के रूप में होनी चाहिए।

प्राकृतिक आपदाओं से बेहाल हुआ है हिमाचल

मुख्यमंत्री ने पनगड़िया को बताया कि राज्य पिछले तीन वर्षों में लगातार विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है, जिससे 15,000 करोड़ रुपये से अधिक की क्षति हो चुकी है और सैकड़ों जानें गई हैं। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र की परिस्थितियां मैदानी इलाकों से बिल्कुल अलग हैं, और इसलिए 15वें वित्त आयोग द्वारा अपनाए गए आपदा जोखिम सूचकांक (डीआरआई) को भी नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है।

 

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राजस्व घाटा अनुदान की निरंतरता पर बल

मुख्यमंत्री सुक्खू ने वित्त आयोग से अनुरोध किया कि राजस्व घाटा झेल रहे पर्वतीय राज्यों के लिए राजस्व घाटा अनुदान की योजना को जारी रखा जाए। उन्होंने कहा कि यह अनुदान राज्य की वास्तविक आय-व्यय स्थिति के अनुसार तय किया जाना चाहिए, न कि केवल औसत आंकड़ों के आधार पर। साथ ही उन्होंने इसकी न्यूनतम राशि 10,000 करोड़ रुपये वार्षिक करने की भी मांग रखी।

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जंगल और ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों को मिले विशेष मान्यता

मुख्यमंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से हिमाचल के वृक्ष-रेखा से ऊपर स्थित बर्फीले रेगिस्तानी क्षेत्रों को भी घने जंगलों की श्रेणी में शामिल किया जाए, क्योंकि इनका पारिस्थितिकीय संतुलन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है।

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