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July 26, 2025
हिमाचल : सरहद पर उजड़ा वीरनारी का सुहाग, पेंशन के पैसों ने पढ़ाए बच्चे- दोनों बने बड़े अफसर
7 और 5 साल की उम्र में बच्चों ने खो दिया था पिता का साया
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कांगड़ा। दर्द की भी एक हद होती है, लेकिन कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो जिंदगी की जड़ों तक उतर जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसल टांडा गांव की सीमा देवी की कहानी ऐसी ही है- एक वीर पत्नी की, एक मां की, और एक अडिग जज्बे की।
14 जून, 1999 करगिल युद्ध का दिन जब 35 वर्षीय वीर जवान ब्रह्मदास माइन कलेक्शन पार्टी के साथ ड्यूटी पर थे, तभी दुश्मन की भीषण गोलाबारी शुरू हो गई। आग की लपटें चारों ओर फैल गईं, पर ब्रह्मदास पीछे नहीं हटे। वे सैनिक वाहनों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में जुटे रहे और देश के लिए बलिदान हो गए।
सीमा देवी को फोन पर सूचना मिली कि उनके पति नायक ब्रह्मदास शहीद हो गए हैं। सीमा देवी उस वक्त योल के सैन्य क्वार्टर में दो छोटे बच्चों के साथ रह रही थीं- बेटी मीनाक्षी (7 वर्ष) और बेटा राहुल (5 वर्ष)। पति के बलिदान के बाद जिम्मेदारियों का बोझ अचानक कंधों पर आ गया। सीमा ने खुद को बिखरने नहीं दिया।
दुख पहाड़ जैसा था, लेकिन सीमा ने उसे अपने संकल्प की ढाल बना लिया। वह टूटने के बजाय एक मजबूत चट्टान बन गईं। अपने बच्चों को पढ़ाना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना अब उनकी जिंदगी का मकसद बन गया।
सीमा ने अपने पति की पेंशन से ही दोनों बच्चों की पढ़ाई और परवरिश की। जब तक बच्चों की केंद्रीय विद्यालय योल से स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं हुई, वे सैन्य क्वार्टर में ही रहीं। बाद में जब बच्चे कॉलेज जाने लगे तो वह पैतृक गांव मसल टांडा लौट आईं।
बेटी मीनाक्षी ने MSC IT की पढ़ाई की और एक बैंक अफसर से शादी की। बेटा राहुल ने BSC IT के बाद तकनीकी परीक्षा पास की और अब जल शक्ति विभाग में कनिष्ठ अभियंता (JE) के पद पर कार्यरत है।
नायक ब्रह्मदास का जन्म 11 मार्च 1964 को हुआ था। वे 1984 में भारतीय सेना की 18वीं ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में भर्ती हुए। सेवा के 15 वर्षों में उन्होंने कई कठिन परिस्थितियों में साहस दिखाया, लेकिन करगिल युद्ध में उन्होंने जो बलिदान दिया, वह अमर हो गया।
मसल टांडा पंचायत में ब्रह्मदास को न केवल एक सैनिक बल्कि एक आदर्श इंसान के रूप में याद किया जाता है। गांव के बुज़ुर्गों से लेकर युवा तक उनकी वीरता की कहानियां सुनाते हैं। हर वर्ष करगिल विजय दिवस के मौके पर श्रद्धांजलि सभाएं होती हैं, जहां ब्रह्मदास को पूरे सम्मान के साथ याद किया जाता है।
सीमा देवी की कहानी सिर्फ़ एक वीरनारी की नहीं है, वह हर उस महिला की कहानी है जो जीवन के तूफानों में भी अपने बच्चों के लिए दीपक की तरह जलती रहती है। उन्होंने साबित कर दिया कि वीरता सिर्फ युद्धभूमि में नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्षों में भी होती है।