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July 26, 2025

हिमाचल : पत्नी की गोद में 3 माह की लाडली छोड़ शहीद हुआ था जवान, अब बेटी भी ज्वाइन करना चाहती है आर्मी

शहीद पिता की बहादुरी की कहानियां सुन और तस्वीरें देख बड़ी हुई बेटी

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Martyr  Praveen Kumar

हमीरपुर। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के गांव सुनहाणी से निकले शहीद प्रवीण कुमार का नाम आज भी गांव की हवाओं में गर्व के साथ लिया जाता है। करगिल युद्ध को भले ही 26 वर्ष बीत गए हों, लेकिन इस गांव और खासकर उनके परिवार के दिलों में आज भी उनकी वीरता की गूंज साफ सुनाई देती है।

3 महीने की मासूम ने खोया पिता

6 जुलाई 1999 को द्रास सेक्टर में दुश्मनों से लोहा लेते हुए 28 वर्ष की उम्र में शहीद हुए प्रवीण कुमार आज भी अपने परिवार और गांव की प्रेरणा हैं। उनकी बेटी निशा कुमारी, जो उस समय केवल तीन माह की थी। आज निशा BSC नर्सिंग कर रही हैं और सेना में भर्ती होकर अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने का दृढ़ निश्चय रखती हैं।

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नहीं देखे कभी पिता

निशा का कहना है कि मैंने कभी पापा को नहीं देखा, पर उनकी बहादुरी की कहानियों में जीती रही हूं। वह बताती हैं कि उन्होंने अपने पिता की तस्वीरें देखीं, कहानियां सुनीं और उन्हीं से जीवन जीने की प्रेरणा ली। आज वह वर्दी पहनने का सपना संजो रही हैं, ताकि उनके पिता की तरह वह भी देश सेवा कर सकें।

वीरनारी का संघर्ष और साहस

प्रवीण कुमार की पत्नी किरण बाला के लिए वह क्षण किसी भयंकर तूफान से कम नहीं था जब उन्हें पति की शहादत की सूचना मिली। वे बताती हैं कि जब उन्हें पति के शहीद होने की खबर मिली तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वो एकदम से चक्कर खाकर गिर गई थी। मगर गोद में 3 महीने की बच्ची की ओर देखकर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

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यादों को बनाया हिम्मत

अपने इस दुख को उन्होंने कभी कमजोरी नहीं बनने दिया। शहीद पति की यादों को हिम्मत बनाकर बेटी को पाला-पोसा। उन्होंने बताया कि आज वो खुद बिझड़ी तहसील कार्यालय में कार्यरत हैं। मायके में रहकर जीवनयापन कर रहीं किरण बाला की आंखें करगिल विजय दिवस पर भले ही नम होती हैं, लेकिन उनकी जुबान पर गर्व और आस्था की मिठास आज भी जीवित है।

गरीब परिवार के बेटे का बलिदान

प्रवीण कुमार का जन्म 21 जून, 1970 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता दर्जी का काम करते थे और माता गृहिणी थीं। उन्होंने कुल्हेड़ा स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और 13 जैक राइफल्स में 26 अक्टूबर 1990 को भर्ती होकर सेना की सेवा शुरू की। उनके दो भाई भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

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माता-पिता का भी हुआ देहांत

प्रवीण कुमार की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके माता-पिता का भी देहांत हो गया। परिवार की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर रही, पर उनके इरादे और देशभक्ति फौलाद जैसी थी। हर वर्ष कारगिल विजय दिवस पर सुनहाणी गांव में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है।

नई पीढ़ी को करते हैं प्रेरित

गांव के लोग प्रवीण कुमार को न सिर्फ याद करते हैं बल्कि उनके बलिदान से नई पीढ़ी को प्रेरित भी करते हैं। उनकी शहादत आज भी उन युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है जो वर्दी पहनने और मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का सपना देखते हैं।

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