#अव्यवस्था
December 3, 2025
IGMC शिमला में चल रहा बड़ा रैकेट- स्टाफ और निजी लैब मिलकर दे रहे मरीजों को धोखा, जानें
मरीजों की मजबूरी और डर का उठाया जा रहा फायदा
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शिमला। हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे विश्वसनीय माने जाने वाले IGMC, शिमला से एक ऐसा खुलासा हुआ है जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पारदर्शिता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अस्पताल परिसर में निजी लैबों के एजेंटों का संगठित रैकेट सक्रिय पाया गया है।
ये रैकेट अस्पताल के अंदर से आने वाली एक कॉल के आधार पर तुरंत मरीजों के ब्लड सैंपल लेकर गायब हो जाते थे। यह नेटवर्क इतना मजबूत था कि बिना अस्पताल के अंदरूनी सहयोग के इसका चलना लगभग असंभव था।
पुलिस जांच में सामने आया कि निजी लैबों से जुड़े ये एजेंट अस्पताल के भीतर से नियमित रूप से सूचना प्राप्त करते थे-किस मरीज का कौन-सा टेस्ट है, किस विभाग में कौन भर्ती है और किसे बाहर भेजा जा सकता है।
जैसे ही अस्पताल स्टाफ की तरफ से कॉल आती, एजेंट कुछ ही मिनटों में IGMC में पहुंच जाते, मरीज को विश्वास में लेते और सैंपल ले जाते। इस दौरान मरीज को यह बताया जाता कि यहां टेस्ट नहीं होगा या बहुत देर लगेगी। जबकि अस्पताल में वही सुविधाएं उपलब्ध थीं।
डॉक्टरों या पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा इशारों में निजी लैब का रुख दिखाया जाता और प्रत्येक टेस्ट पर तय कमीशन की राशि एजेंटों से भीतर के संपर्कों तक पहुंचती थी। पुलिस ने स्वीकार किया है कि यह कोई साधारण अनियमितता नहीं बल्कि पूरी तरह संगठित कमीशन आधारित रैकेट है।
जांच में कई महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं-
पुलिस अब कई डॉक्टरों, पैरामेडिकल कर्मचारियों और लैब संचालकों के कॉल डिटेल, बैंक ट्रांजैक्शन, सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रही है। कुछ दिन पहले IGMC परिसर में एक एजेंट युवती को रंगे हाथ पकड़ा गया। पूछताछ में उसके कबूलनामे से पुलिस के हाथ महत्वपूर्ण सुराग लगे।
इससे नेटवर्क की जड़ें और गहरी निकलीं और पता चला कि कुल 7 एजेंट (5 महिलाएं, 2 पुरुष) लंबे समय से यह धंधा चला रहे थे। हर एजेंट अलग-अलग निजी लैब से जुड़ा था। ये सभी अस्पताल के स्टाफ से पूर्व निर्धारित संकेत मिलने पर सक्रिय होते थे।
पूछताछ में एजेंटों ने बताया कि IGMC से आने वाली कॉल उनके लिए “सिग्नल” होती थी। जैसे ही फोन आता था उन्हें बताया जाता कि किस वार्ड, कमरा या ओपीडी में किस मरीज का टेस्ट है। एजेंट सीधे वहीं पहुंचकर सैंपल ले लेते- फिर पैकेज और महंगी टेस्टिंग करवाकर निजी लैब को फायदा पहुंचाते। मरीजों के इलाज की गुणवत्ता से समझौता करते हुए इन्हें केवल कमाई पर ध्यान देना था।
कई मरीजों ने बताया कि विरोध करने पर इलाज में कोताही का डर दिखाया जाता था। अस्पताल में उपलब्ध सेवा के बावजूद उन्हें बहाने बनाकर बाहर भेजा जाता। यह नेटवर्क मुख्य रूप से गरीब और अनजान मरीजों को निशाना बनाता था। यह सब अस्पताल प्रशासन की नजर से कैसे बचा रहा, यह भी बड़ा सवाल है।
सूत्रों के अनुसार, अस्पताल प्रबंधन ने इस अनियमितता का अंदर ही अंदर संज्ञान लिया और पुलिस को लिखित शिकायत भेजी, जिसके बाद आधिकारिक जांच शुरू हुई।
पुलिस अब ऐसे बड़े नामों की तलाश में है जो इस नेटवर्क के असली सरगना हो सकते हैं।
कई कर्मचारी जांच के दायरे में हैं। आने वाले दिनों में कई कड़ियां और बड़े नाम सामने आ सकते हैं। कई डॉक्टरों, लैब तकनीशियन, पैरामेडिकल कर्मचारियों और प्रशासनिक कर्मचारियों के नाम सामने आ सकते हैं।
लोगों का कहना है कि जब प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी चिकित्सा संस्थान ही कमीशनखोरी का अड्डा बन जाए, तब सवाल उठता है-