#अव्यवस्था

December 3, 2025

IGMC शिमला में चल रहा बड़ा रैकेट- स्टाफ और निजी लैब मिलकर दे रहे मरीजों को धोखा, जानें

मरीजों की मजबूरी और डर का उठाया जा रहा फायदा

शेयर करें:

IGMC Shimla Test lab Agents Commission

शिमला। हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे विश्वसनीय माने जाने वाले IGMC, शिमला से एक ऐसा खुलासा हुआ है जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पारदर्शिता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अस्पताल परिसर में निजी लैबों के एजेंटों का संगठित रैकेट सक्रिय पाया गया है।

IGMC में बड़ा रैकेट

ये रैकेट अस्पताल के अंदर से आने वाली एक कॉल के आधार पर तुरंत मरीजों के ब्लड सैंपल लेकर गायब हो जाते थे। यह नेटवर्क इतना मजबूत था कि बिना अस्पताल के अंदरूनी सहयोग के इसका चलना लगभग असंभव था।

यह भी पढ़ें: हिमाचल: 13 साल की विभूति ने गुल्लक तोड़ दान किए 11 हजार, टांग गंवा चुके आदमी को दी नई जिंदगी

कैसे चला पूरा खेल?

पुलिस जांच में सामने आया कि निजी लैबों से जुड़े ये एजेंट अस्पताल के भीतर से नियमित रूप से सूचना प्राप्त करते थे-किस मरीज का कौन-सा टेस्ट है, किस विभाग में कौन भर्ती है और किसे बाहर भेजा जा सकता है।

 

जैसे ही अस्पताल स्टाफ की तरफ से कॉल आती, एजेंट कुछ ही मिनटों में IGMC में पहुंच जाते, मरीज को विश्वास में लेते और सैंपल ले जाते। इस दौरान मरीज को यह बताया जाता कि यहां टेस्ट नहीं होगा या बहुत देर लगेगी। जबकि अस्पताल में वही सुविधाएं उपलब्ध थीं।

यह भी पढ़ें: हिमाचल में खुली लूट- खोखले हो रहे पहाड़, अवैध खनन के आंकड़े देख डर जाएंगे आप

कमीशनखोरी में डॉक्टरों व स्टाफ

डॉक्टरों या पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा इशारों में निजी लैब का रुख दिखाया जाता और प्रत्येक टेस्ट पर तय कमीशन की राशि एजेंटों से भीतर के संपर्कों तक पहुंचती थी। पुलिस ने स्वीकार किया है कि यह कोई साधारण अनियमितता नहीं बल्कि पूरी तरह संगठित कमीशन आधारित रैकेट है।

क्या हुए बड़े खुलासे?

जांच में कई महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं-

  • निगरानी के दौरान एजेंटों और अस्पताल कर्मचारियों के बीच प्रतिदिन संपर्क पाया गया
  • कुछ डॉक्टरों द्वारा मरीजों को परोक्ष रूप से निजी लैब भेजने के प्रमाण
  • एजेंटों द्वारा कमीशन सीधे अस्पताल के अंदर मौजूद अपने “संपर्क सूत्रों” को देना
  • मरीजों को धमकीनुमा संकेत-“अगर यहां टेस्ट करवाएंगे तो इलाज में देरी होगी”

यह भी पढ़ें: हिमाचल : 7 महीने रिहैब में रहा, नहीं छूटी चिट्टे की लत- परिजनों के सामने तड़प-तड़पकर तोड़ा दम

कैसे खुली रैकेट की पोल?

पुलिस अब कई डॉक्टरों, पैरामेडिकल कर्मचारियों और लैब संचालकों के कॉल डिटेल, बैंक ट्रांजैक्शन, सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रही है। कुछ दिन पहले IGMC परिसर में एक एजेंट युवती को रंगे हाथ पकड़ा गया। पूछताछ में उसके कबूलनामे से पुलिस के हाथ महत्वपूर्ण सुराग लगे।

कौन चल रहा था धंधा?

इससे नेटवर्क की जड़ें और गहरी निकलीं और पता चला कि कुल 7 एजेंट (5 महिलाएं, 2 पुरुष) लंबे समय से यह धंधा चला रहे थे। हर एजेंट अलग-अलग निजी लैब से जुड़ा था। ये सभी अस्पताल के स्टाफ से पूर्व निर्धारित संकेत मिलने पर सक्रिय होते थे।

यह भी पढ़ें: हिमाचल : दोस्तों संग घूमने निकला था एयरफोर्स जवान, घर लौटी देह- बूढ़ी मां और पत्नी बेसुध

कॉल ही थी सबसे बड़ी चाबी

पूछताछ में एजेंटों ने बताया कि IGMC से आने वाली कॉल उनके लिए “सिग्नल” होती थी। जैसे ही फोन आता था उन्हें बताया जाता कि किस वार्ड, कमरा या ओपीडी में किस मरीज का टेस्ट है। एजेंट सीधे वहीं पहुंचकर सैंपल ले लेते- फिर पैकेज और महंगी टेस्टिंग करवाकर निजी लैब को फायदा पहुंचाते। मरीजों के इलाज की गुणवत्ता से समझौता करते हुए इन्हें केवल कमाई पर ध्यान देना था।

मरीजों की मजबूरी और डर का फायदा

कई मरीजों ने बताया कि विरोध करने पर इलाज में कोताही का डर दिखाया जाता था। अस्पताल में उपलब्ध सेवा के बावजूद उन्हें बहाने बनाकर बाहर भेजा जाता। यह नेटवर्क मुख्य रूप से गरीब और अनजान मरीजों को निशाना बनाता था। यह सब अस्पताल प्रशासन की नजर से कैसे बचा रहा, यह भी बड़ा सवाल है।

यह भी पढ़ें: हिमाचल : पिता ने सड़कों पर सब्जी बेच जुटाए पैसे, लाडला जीत लाया 3 गोल्ड- दुनियाभर में चर्चा

IGMC प्रबंधन ने लिखित शिकायत भेजी

सूत्रों के अनुसार, अस्पताल प्रबंधन ने इस अनियमितता का अंदर ही अंदर संज्ञान लिया और पुलिस को लिखित शिकायत भेजी, जिसके बाद आधिकारिक जांच शुरू हुई।
पुलिस अब ऐसे बड़े नामों की तलाश में है जो इस नेटवर्क के असली सरगना हो सकते हैं।

जल्द आ सकते हैं बड़े नाम

कई कर्मचारी जांच के दायरे में हैं। आने वाले दिनों में कई कड़ियां और बड़े नाम सामने आ सकते हैं। कई डॉक्टरों, लैब तकनीशियन, पैरामेडिकल कर्मचारियों और प्रशासनिक कर्मचारियों के नाम सामने आ सकते हैं।

यह भी पढ़ें: हिमाचल: स्कूल में हुई कहासुनी पर 10वीं की छात्रा ने निगला जह*र- PGI में तोड़ा दम, जांच शुरू

क्या सरकारी अस्पताल सुरक्षित व भरोसेमंद हैं?

लोगों का कहना है कि जब प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी चिकित्सा संस्थान ही कमीशनखोरी का अड्डा बन जाए, तब सवाल उठता है-

  • मरीज भरोसा आखिर करे तो किस पर?
  • क्या अस्पताल की आंतरिक निगरानी इतनी कमजोर है?
  • कमीशनखोरी के इस नेटवर्क में कितने लोग शामिल हैं?

नोट : ऐसी ही तेज़, सटीक और ज़मीनी खबरों से जुड़े रहने के लिए इस लिंक पर क्लिक कर हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करें

ट्रेंडिंग न्यूज़
LAUGH CLUB
संबंधित आलेख