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September 13, 2025

हिमाचल में यहां मिल रहा 4 हजार का सिलेंडर, 500 रुपए किलो तेल, मचा हाहाकार

तीन से चार गुणा महंगी मिल रही हर चीज

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Malana Village Crisis

कुल्लू। हिमाचल प्रदेश की मणिकर्ण घाटी का ऐतिहासिक और प्राचीन गाँव मलाणा आज एक साल से भी ज़्यादा समय से भारी संकटों का सामना कर रहा है। यहाँ की लगभग तीन हज़ार की आबादी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। चावल, आटा, दाल जैसी ज़रूरी चीजें लगभग ख़त्म हो चुकी हैं और जो भी सामान गाँव में पहुंच रहा है, वह इतने महंगे दामों पर मिल रहा है कि गाँव का एक निवाला भी फाइव स्टार होटल के खाने से ज्यादा खर्चीला हो गया है।

सड़क संपर्क टूटने से संकट गहराया

1 अगस्त 2024 को मलाणा डैम फटने के बाद से गाँव तक जाने वाली मुख्य सड़क बह गई थी। उसके बाद से आज तक यह सड़क दुरुस्त नहीं हो पाई है। सड़क के साथ ही खड्ड पर बना पुल भी बह गया था, जिससे गाँव का संपर्क पूरी तरह कट गया।

 

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ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से लकड़ी का पुल तैयार किया ताकि पैदल आना-जाना संभव हो सके, लेकिन इस साल की बरसात ने वह भी बहा दिया। मजबूर होकर लोगों ने दोबारा अस्थायी पुल बनाया, परंतु सड़क अब भी बहाल नहीं हो सकी।

दोगुने–तीन गुना दामों पर सामान

गाँव तक पहुंचना आसान नहीं है। इसी कारण आटा, चावल, सब्ज़ियाँ, दालें, तेल, शैंपू, साबुन आदि हर रोज़मर्रा का सामान तीन से चार गुना महंगा हो चुका है। उदाहरण के लिए, 60 रुपये किलो का प्याज गाँव में 250 से 300 रुपये किलो बिक रहा है।

 

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10 किलो आटे की बोरी 1500 रुपये और गैस का सिलेंडर 3,000 से 4,000 रुपये तक मिल रहा है। सरसों का तेल 500 रुपये लीटर बिक रहा है। लोगों का कहना है कि अब महीने भर के राशन का खर्च, केवल 10 दिन की ज़रूरत भी पूरी नहीं कर पा रहा।

कुल्लू तक पहुंचने में डेढ़ दिन का सफर

लगातार बरसात और भूस्खलन के कारण गाँव के पैदल रास्ते भी टूट चुके हैं। वहीं पिछले 20 दिनों से न बिजली है और न ही पानी। लोगों की दिनचर्या पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गई है। मलाणा से ज़िला मुख्यालय तक पहुंचना बेहद कठिन हो गया है।

 

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ग्रामीणों को पहले 8 घंटे पैदल चलकर जरी बाजार पहुंचना पड़ता है और उसके बाद छोटी गाड़ियों से कुल्लू जाना होता है। गाँव के युवाओं ने डीसी कुल्लू को समस्या से अवगत कराने के लिए पैदल सफर कर ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों का कहना है कि वे पहले भी कई बार प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।

मजदूरों के सहारे चल रही रसद

गाँव तक सड़क बंद होने की वजह से दुकानदार और नेपाली मजदूर कई किलोमीटर पैदल चलकर सामान ढो रहे हैं। उनके मेहनताना जोड़ने पर वस्तुओं की कीमतें और अधिक बढ़ जाती हैं। हर दिन भोजन और ज़रूरी सामान जुटाना ग्रामीणों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

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