#अव्यवस्था
December 2, 2025
ये कैसी व्यवस्था! सरकार ने पहले खुद ही बनवाए हिम कार्ड, अब बसों में नहीं चल रहे- लोग परेशान
कार्ड बनवाने का शुल्क 236 रुपये रखा गया है
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शिमला। हिमाचल पथ परिवहन निगम, HRTC की नई हिम बस कार्ड योजना शुरुआत से ही अव्यवस्थाओं की चपेट में आ गई है। प्रदेश में अब तक करीब 10 हजार लोगों के कार्ड तो बन चुके हैं, लेकिन विडंबना यह है कि ये कार्ड निगम की बसों में चल ही नहीं पा रहे।
इसका मुख्य कारण है- परिचालकों को दी गई टिकटिंग मशीनें, जो कि समय पर अपडेट नहीं की गईं। मशीनों के अपडेट ना होने के कारण कार्ड स्कैन ही नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में लोगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले कई दिनों से प्रदेशभर की बसों में यह आम से बात हो गई है कि यात्री उत्साह के साथ अपना नया हिम बस कार्ड दिखाते हैं, लेकिन कंडक्टर की मशीन बार-बार “स्कैन फेल” दिखाती है। इससे यात्रियों और परिचालकों दोनों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, मशीनों को सॉफ्टवेयर अपडेट में अभी दो-तीन महीने का समय लग सकता है। जबकि, हिम कार्ड हर दिन बड़ी संख्या में बनाए जा रहे हैं। ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि- अगर मशीनें चल ही नहीं रही हैं- तो कार्ड बनाने का क्या फायदा है।
यह कार्ड जिस दिन बनता है, उसी तारीख से एक साल तक मान्य रहेगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि निगम ने कार्ड बनवाने की अंतिम तारीख तय ही नहीं की है, बावजूद इसके काउंटरों पर भीड़ लगातार बढ़ रही है।
प्रदेश सरकार ने पहले से रियायत प्राप्त यात्रियों को यह कार्ड अनिवार्य रूप से जारी करने का फैसला लिया है। कार्ड शुल्क 236 रुपये रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति घर पर कार्ड मंगवाना चाहता है, तो उसे अतिरिक्त राशि चुकानी होगी। काउंटरों पर भारी भीड़ देखकर यह साफ है कि लोग सुविधा चाहते हैं, लेकिन मशीनों की नॉन-अपडेटेड स्थिति सबके लिए मुसीबत बन गई है।
यह कार्ड हिमाचल की बड़ी आबादी को कवर करता है। इनमें शामिल हैं-
राज्य व जिला स्तर पर मान्यता प्राप्त पत्रकार
परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक निपुण जिंदल ने कहा कि कार्ड बनाने की प्रक्रिया तेज की जा रही है। जल्द ही कार्ड बनाने की समय सीमा तय की जाएगी। 15 जनवरी तक अधिकांश कार्ड बन जाने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मशीनों को अपडेट करने का काम भी शुरू कर दिया गया है।
उधर, लोगों का कहना है कि कार्ड बनवाने में समय और पैसा खर्च करने के बाद भी सुविधा नहीं मिल रही। परिचालक भी असहज हैं, क्योंकि उन्हें कार्ड रीड न होने पर रियायत का लाभ मैनुअली देना पड़ता है। उनका कहना है कि अगर कार्ड बन रहे हैं तो कम से कम उन कार्डों को बस में चलने का भी हल होना चाहिए।