#अव्यवस्था
July 18, 2025
"पहाड़ों की रानी" शर्मसार : खुद की लाज बचाने के प्रयास में नगर निगम शिमला
सर्वे को दोषी ठहरा रहा नगर नगम शिमला
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शिमला। ग्रीन स्टेट कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश की राजधानी और देश-विदेश में पहाड़ों की रानी के नाम से प्रसिद्ध शिमला, स्वच्छता के मामले में एक बार फिर से बुरी तरह पिछड़ गया है। हाल ही में जारी केंद्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 के आंकड़े सामने आने से यह स्पष्ट हो गया कि, शिमला अब न तो देश के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में है और न ही प्रदेश के टॉप थ्री में।
जानकारी के अनुसार, शिमला शहर में सफाई के लिए करोड़ों की लागत से हाईटेक मशीनरी खरीदी गई हैं लेकिन उनका असर ज़मीनी स्तर पर नहीं दिखा। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि, झाड़ू मारने वाली मशीनें जिन पर लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किए गए अब सिर्फ शोपीस बनकर रह गई हैं।
शिमला के रिज मैदान पर लाइब्रेरी के पास खड़ी इन मशीनों को देखकर लोग सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर यह दिखावे के लिए खरीदी गई थीं या सच में सफाई के लिए?
पिछले आंकड़ों के अनुसार, शिमला शहर को वर्ष 2016 में 27वां रैंक मिला था। वर्ष 2017 में 47वां रैंक साल 2018 में, साल 2019 में 127वां रैंक और साल 2020 में शिमला को रैंकिंग में 65वां स्थान मिला था। हालांकि, साल 2023 में शिमला को 56वां रैंक मिलने से एक बार बेहतरी की उम्मीद जागी थी मगर साल 2024 में शिमला बुरी तरह पिछड़कर 188वें पायदान पर पहुंच गया और इस बार तो टॉप 350 की सूची से बाहर होकर सबको अचम्भित कर दिया है।
स्थानीय लोगों ने स्वच्छता मामले में गिरती शिमला शहर की रैंकिंग पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि, एक समय था जब अंग्रेजी हुकूमत के दौरान शिमला की सड़कों के साथ-साथ गलियों तक को पानी से धोया जाता था।
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दस्तावेजों में इसका जिक्र मिलता है कि आजादी से पहले की शिमला नगर पालिका देश की बेहतरीन निकायों में गिनी जाती थी। आज जब संसाधन, तकनीक और योजनाएं कहीं अधिक हैं, तब हालात बदतर होना प्रशासन की कार्यशैली और इच्छाशक्ति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
राजधानी होने के नाते शिमला से उम्मीद थी कि वह स्वच्छता के मानकों पर अन्य शहरों के लिए मिसाल बनेगा। लेकिन स्मार्ट सिटी मिशन के तहत करोड़ों की योजनाएं और संसाधन झोंकने के बावजूद शहर की हालत कुछ और ही बयां करती है। शहर की मुख्य सड़कों से लेकर आवासीय इलाकों तक, स्वच्छता व्यवस्था में कई खामियां उजागर हुई हैं। 824 शहरों में किए गए इस सर्वे में शिमला को 347वां स्थान मिला है, जो अब तक की सबसे खराब रैंकिंग मानी जा रही है।
शिमला नगर निगम का दायरा समय के साथ बढ़ता रहा है, खासकर हर चुनाव से पहले। कभी जेएनएनयूआरएम योजना के तहत केंद्र से फंड लाने के लिए तो कभी स्मार्ट सिटी के नाम पर अनुदान लेने के लिए।
लेकिन इस बढ़े हुए दायरे के अनुरूप सफाई कर्मचारियों की संख्या, कचरा निपटान प्रणाली, जल स्रोतों की सफाई, गीले-सूखे कचरे के प्रबंधन जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं नहीं बढ़ाई गईं। नतीजा, शहर का फैलाव तो हो गया, पर सफाई व्यवस्था बिखर गई।
स्वच्छता सर्वेक्षण के मुताबिक शहर की कुछ रिहायशी कॉलोनियों और बाजारों में सफाई का स्तर बेहतर जरूर हुआ है, लेकिन घरों से कूड़ा उठाने की नियमितता, कचरे की छंटाई और प्राकृतिक स्रोतों की सफाई जैसे पहलुओं में शिमला पिछड़ गया है। पूरे 7500 अंकों में से शिमला को सिर्फ 4798 अंक ही मिले।
शिमला की गिरती रैंकिंग पर नगर निगम के महापौर ने सर्वेक्षण की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि शिमला में पिछले वर्षों की तुलना में काफी सुधार हुआ है और पहले जहां कूड़े के ढेर आम बात थे, अब वो तस्वीर नहीं रही। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे इस रैंकिंग को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं।