#अव्यवस्था
August 3, 2025
हिमाचल : खतरे के साए में पढ़ रहे बच्चे, कभी भी गिर सकता है स्कूल- नहीं दिया जा रहा ध्यान
मुरम्मत के लिए 20 लाख मंजूर- फिर भी नहीं करवा रहे काम
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सोलन। हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे स्कूल हैं- जहां पर बच्चे हर वक्त खतरे के साए में पढ़ने को मजबूर हैं। ऐसा ही कुछ सोलन जिले के कुमारहट्टी गांव में स्थित एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय का हाल है। जहां पर 166 छात्र-छात्राएं हर दिन मौत के साए में पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
यह स्कूल राज्य की उन कई शिक्षण संस्थाओं की तरह है, जो न केवल भौतिक संसाधनों की भारी कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के खतरे के बीच भी शिक्षा की मशाल जलाए हुए हैं।
स्कूल भवन का एक कमरा दरारों से भरा हुआ है और कभी भी ढह सकता है। विभाग ने इसे असुरक्षित घोषित किया है, लेकिन अब तक इसे गिराया नहीं गया। यह कमरा बच्चों की कक्षाओं के करीब ही स्थित है और सिर्फ डेस्क व बेंच से बैरिकेडिंग करके छात्रों को वहां जाने से रोका गया है।
स्कूल के ठीक नीचे की पहाड़ी में धंसाव की स्थिति बनी हुई है। बरसात के मौसम में भूस्खलन का खतरा हमेशा बना रहता है। इसके बावजूद, विद्यालय के शिक्षक और छात्र उसी स्थान पर जमे हुए हैं, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं।
विद्यालय में कक्षाओं की संख्या जरूरत से कम है। दो कक्षाओं के छात्र रोजाना बरामदे में टाट-पट्टी बिछाकर पढ़ाई करते हैं। खुले बरामदे में कभी बारिश, कभी धूप और कभी तेज़ हवा के बीच बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। शोरगुल और ध्यान भटकाने वाले माहौल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना शिक्षकों के लिए भी बड़ी चुनौती है।
बताया जा रहा है कि स्कूल ने भवन के पुननिर्माण के लिए 20 लाख रुपये जमा करवा दिए हैं। बावजूद इसके आज तक स्कूल में निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। लोगों का कहना है कि अगर स्कूल के लिए फंड उपलब्ध है तो देरी किस बात की है और किस बात का इंतजार किया जा रहा है। क्या फिर से किसी बड़े हादसे का इंतज़ार किया जा रहा है?
स्कूल परिसर में खेल मैदान नहीं है। बच्चों को शारीरिक गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं मिलती। अध्यापक बताते हैं कि वे पूरी कोशिश करते हैं कि किसी तरह बच्चों की शारीरिक गतिविधियां करवाई जाएं, लेकिन स्थान की कमी इसमें बड़ी बाधा बनकर खड़ी है। इससे बच्चों का सर्वांगीण विकास रुक रहा है।
विदित रहे कि, वर्ष 2023 की बरसात में ही यह स्कूल भवन भूस्खलन के चलते बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ था। पीछे की ओर की दीवारें दरक गई थीं और सामने का मैदान भी धंस गया था। उस समय करीब एक साल तक स्कूल में कक्षाएं पूरी तरह से बंद रहीं। बाद में अस्थायी मरम्मत करके पढ़ाई शुरू की गई, लेकिन खतरा अभी भी टला नहीं।
जगह की कमी और भीड़-भाड़ के कारण मिड-डे मील योजना भी प्रभावित हो रही है। शिक्षकों को भोजन परोसने और बैठाने में खासी दिक्कत होती है, जिससे बच्चों को पूरा लाभ नहीं मिल पाता।
स्थानीय अभिभावकों ने कई बार विभागीय अधिकारियों से स्कूल की स्थिति को लेकर शिकायत की है। लेकिन न तो नए भवन का निर्माण शुरू हुआ, न ही वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गईं। अभिभावकों का कहना है कि अपने बच्चों को हर रोज़ स्कूल भेजते हुए दिल दहलता है, लेकिन पढ़ाई रुक भी नहीं सकती।