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October 27, 2025

धड़ाम से गिरा CM सुक्खू का शराब एक्सपेरीमेंट - 7 महीने में करोड़ों की चपत, अब होगी नीलामी

एजेंसियों से वसूली के लिए रिकवरी नोटिस जारी

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Liquor Policy

शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शराब की बिक्री को सरकारी एजेंसियों के माध्यम से संचालित करने का प्रयोग बुरी तरह असफल साबित हुआ है। महज सात महीनों के भीतर इस योजना ने सरकार के खजाने को करीब ₹54.52 करोड़ रुपये की चपत लगा दी है।

आबकारी विभाग ने यह रखा था लक्ष्य

जानकारी के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आबकारी विभाग ने प्रदेश के 256 शराब ठेकों को कुल ₹252 करोड़ की कीमत पर नीलाम करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह योजना अपेक्षानुसार नहीं चली।

 

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विभाग केवल 183 ठेके ही ₹218 करोड़ में नीलाम कर पाया, जबकि 73 ठेकों के लिए कोई निजी खरीदार नहीं मिला। ऐसे में सरकार ने इन ठेकों को अस्थायी रूप से सरकारी एजेंसियों को सौंप दिया।

नहीं हो पाया लाइसेंस फीस का नियमित भुगतान

इन एजेंसियों में नगर निगम शिमला, हिमफेड, हिमाचल प्रदेश मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग कॉर्पोरेशन (HPMC), हिमाचल प्रदेश जनरल इंडस्ट्रियल कॉर्पोरेशन (HPGIC) और हिमाचल वन विकास निगम शामिल थे।

 

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परंतु इन सभी संस्थानों के पास शराब बिक्री संचालन का अनुभव नहीं था, और नतीजा यह रहा कि लाइसेंस फीस का नियमित भुगतान नहीं हो पाया। अब स्थिति यह है कि सभी एजेंसियां आबकारी विभाग की नज़र में डिफाल्टर घोषित हो चुकी हैं। विभाग ने इनके विरुद्ध हिमाचल प्रदेश लैंड रेवेन्यू एक्ट के तहत कार्रवाई शुरू कर दी है।

कुल बकाया इस प्रकार है:

  • नगर निगम शिमला: ₹5.77 करोड़
  • एचपीएमसी: ₹12.84 करोड़
  • वन निगम: ₹14.37 करोड़
  • जीआईसी: ₹12.67 करोड़
  • हिमफेड: ₹2.87 करोड़

एजेंसियों से वसूली के लिए रिकवरी नोटिस जारी

इन एजेंसियों से वसूली के लिए रिकवरी नोटिस जारी कर दिए गए हैं। लगभग ₹48.52 करोड़ रुपये लाइसेंस फीस और ₹6 करोड़ रुपये अन्य बकाया के रूप में वसूले जाने हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार, यदि तय समय सीमा में ये संस्थाएं बकाया राशि जमा नहीं करतीं, तो उनकी संपत्तियों पर रेड एंट्री दर्ज कर नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

 

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सरकार अब इस असफल प्रयोग के बाद ठेकों को निजी हाथों में वापस दे चुकी है। इन्हें रिज़र्व प्राइस से 40% कम दरों पर ठेकेदारों को सौंपा गया है। वर्तमान में प्रदेश के सभी 256 ठेके फिर से निजी ऑपरेटरों के अधीन हैं।

निजी प्रणाली को बनाए रखने के पक्ष में

आबकारी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा संचालित शराब बिक्री योजना “राजस्व सृजन” के बजाय “राजकोषीय नुकसान” में बदल गई। अब सरकार भविष्य में इस तरह के प्रयोगों से बचते हुए निजी प्रणाली को ही बनाए रखने के पक्ष में है।

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