#उपलब्धि
July 15, 2025
हिमाचल : पिता के नक्शे कदम पर चली बेटी, इंडियन हैंडबाल टीम की बनी कप्तान
कनिष्का के पिता 10 बार हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं
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बिलासपुर। कहते हैं कि हौसलों की उड़ान जब विरासत से मिल जाए, हर मंजिल झुक जाए, हर राह सवर जाए। यही बात साबित कर दिखाई है बिलासपुर जिले के घुमारवीं की बेटी कनिष्का ने। घुमारवीं की गलियों से निकली एक होनहार बेटी ने अब अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने की तैयारी पूरी कर ली है।
कनिष्का, जो आज भारतीय यूथ एशियन हैंडबॉल टीम की कप्तान बनने जा रही हैं, सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि विरासत, मेहनत और समर्पण का प्रेरणास्पद चेहरा बन चुकी हैं। कनिष्का की इस उपलब्धि से पूरे घुमारवीं क्षेत्र के लिए गौरव का क्षण है।
कनिष्का को हैंडबॉल का जुनून विरासत में मिला। उनके पिता सुशील कुमार (सीलू) स्वयं राष्ट्रीय स्तर के हैंडबॉल खिलाड़ी रहे हैं और 10 बार हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। खेल उनके खून में है और अनुशासन उनके जीवन का हिस्सा।
सुशील मूल रूप से मंडी जिला के सरकाघाट उपमंडल के नबाही गांव से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता जगदीश वर्मा, जो सेना से सेवानिवृत्त होकर शिक्षा विभाग में कार्यरत हुए, 1989 में घुमारवीं में आकर बसे। वहीं से कनिष्का के खेल जीवन की नींव रखी गई।
कनिष्का की खेली यात्रा में मोरसिंघी हैंडबॉल नर्सरी की भूमिका भी निर्णायक रही। इस नर्सरी की संस्थापक और कोच स्नेहलता स्वयं एक उत्कृष्ट खिलाड़ी रही हैं। उन्होंने अपने पति सचिन (चंडीगढ़ निवासी) के साथ मिलकर इस खेल को अपना जीवन समर्पित किया है।
आज इस नर्सरी से सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार हो चुके हैं। स्नेहलता की मेहनत, अनुशासन और खिलाड़ी निर्माण की कला का ही परिणाम है कि कनिष्का जैसे प्रतिभावान युवा अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचे हैं।
सुशील कुमार ने अपनी बेटी को खुद प्रशिक्षण देने के बजाय मोरसिंघी नर्सरी में भेजा, जहां उसने खेल की तकनीकी बारीकियां सीखीं। पिता ने बेटी के सपनों में रोड़ा नहीं, बल्कि पुल बनने का कार्य किया। और आज वही बेटी भारत की यूथ एशियन हैंडबॉल टीम की कप्तान बनने जा रही है। यह उन सभी अभिभावकों के लिए प्रेरणा है, जो बेटियों के खेल या करियर को लेकर दुविधा में रहते हैं।
कनिष्का का यह चयन एक शुरुआत है, एक नई उड़ान का आग़ाज़। एक ऐसी यात्रा, जहां हिमाचल की बेटियां भी अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी पहचान खुद गढ़ रही हैं। उनका यह सफर साबित करता है कि "यदि मेहनत, मार्गदर्शन और विरासत तीनों साथ हों, तो कोई भी सपना नामुमकिन नहीं रहता।"