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July 19, 2025
हिमाचल के किसान ने उगाया दुनिया का सबसे महंगा आम, लाखों में है कीमत; जानें क्यों है खास
कोलकाता से मंगवाए थे "मियाजाकी" आम की किस्म के पौधे
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नाहन। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में अब पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक और उच्च लाभ वाली कृषि की ओर रुझान बढ़ रहा है। इसका एक बेहतरीन उदाहरण सिरमौर जिले के डाडूवाला गांव से सामने आया है, जहां एक प्रगतिशील किसान ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिसने पूरे राज्य का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। विक्रमबाग पंचायत से संबंध रखने वाले किसान नवीन कुमार ने अपने बगीचे में दुनिया के सबसे महंगे आम को उगाने में सफलता हासिल की है। यह वही दुर्लभ किस्म है जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 2 से 3 लाख रुपए प्रति किलो तक आंकी जाती है।
नवीन कुमार ने दो साल पहले कोलकाता की एक निजी नर्सरी से मियाजाकी आम की किस्म के दो पौधे मंगवाए थे। उन्होंने इन्हें कूरियर के माध्यम से मंगाया और प्रति पौधा लगभग 5 हजार रुपये खर्च किए। प्रारंभ में इसे एक प्रयोग के तौर पर लिया गया, लेकिन इन पौधों ने दो साल के भीतर ही फल देना शुरू कर दिया।
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मियाजाकी आम की खासियत यह है कि जब यह कच्चा होता है तो इसका रंग गहरा बैंगनी होता है, जबकि पकने पर यह रंग एक दमदार लाल रंग में बदल जाता है। स्वाद में यह अत्यंत मीठा होता है और इसकी सुगंध बेहद आकर्षक होती है। इस किस्म में बीटा.कैरोटीन, फोलिक एसिड, और एंटीऑक्सिडेंट्स की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो इसे औषधीय दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण बनाती है।
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प्रारंभिक सफलता से उत्साहित होकर नवीन कुमार ने अब इसकी व्यावसायिक खेती शुरू करने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि वे अब विभिन्न किस्मों के विशेष आमों का मिश्रित बगीचा तैयार करने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि पारंपरिक आमों को बाजार में उचित दाम नहीं मिल रहे। वे मानते हैं कि अगर हिमाचल जैसे प्रदेश में ऐसी नई किस्में सफल हो सकती हैं, तो किसानों की आय को कई गुना बढ़ाया जा सकता है।
नवीन कुमार को विश्वास है कि निकटवर्ती बड़े शहरों जैसे देहरादून और चंडीगढ़ की मंडियों में मियाजाकी आम को अच्छी कीमत मिलेगी। उनकी योजना इन शहरों में आम के सीधे विपणन की है, ताकि बिचौलियों से बचा जा सके और मुनाफा सीधे किसान के हाथों में पहुंचे।
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गौरतलब है कि मियाजाकी आम मूलतः जापान के मियाजाकी शहर में उगाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘Irwin’ है, और यह किस्म पहली बार 1940 के दशक में अमेरिका के फ्लोरिडा में विकसित की गई थी। जापान में इस आम की खेती 1980 के दशक में शुरू हुई थी, और तब से इसे "मियाजाकी" नाम से ही जाना जाता है।
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नवीन कुमार की यह उपलब्धि न केवल हिमाचल, बल्कि पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणा बन सकती है। वह दिखा रहे हैं कि अगर इच्छा शक्ति और वैज्ञानिक सोच हो, तो पर्वतीय क्षेत्र में भी वैश्विक स्तर की खेती संभव है। इससे न सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी, बल्कि हिमाचल के कृषि क्षेत्र को भी अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी।