#हादसा

July 13, 2025

हिमाचल फ्लड : अपनी परवाह किए बिना 25 लोगों को बचाया, खुद मलबे की चपेट में आ गया बुद्धे राम

बेटे को तीन दिन बाद पता चला पिता के देहांत के बारे में

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Budhe Ram

मंडी। कभी-कभी कुछ घटनाएं सिर्फ आंकड़े नहीं होतीं। कुछ कहानियां सिर्फ शब्दों में नहीं समातीं, वे दिलों में उतर जाती हैं- हमेशा के लिए। हिमाचल की सराज घाटी में आई हालिया त्रासदी में एक नाम ऐसा भी था, जिसने साबित किया कि मानवता आज भी जिंदा है। वो नाम था- बुद्धे राम, उम्र 59 वर्ष, पेशे से ट्रांसपोर्टर।

बुद्धे राम बन गए दीवार

उस रात को जब पानी हर ओर से कहर बरपा रहा था, तब बुद्धे राम केवल ट्रक चालक नहीं थे, वे कई परिवारों के रक्षक और एक सच्चे हीरो थे। सराज के थुनाग क्षेत्र में आई बाढ़ और भूस्खलन ने सब कुछ तबाह कर दिया। पानी सिर्फ घरों को नहीं, हौसलों को भी बहा ले गया।

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बहने लगे पास के घर

इसी तबाही के बीच बुद्धे राम का घर लोगों के लिए एक शरणस्थली बन गया। जब पास के घर बहने लगे, तो उन्होंने 10 से ज़्यादा लोगों को- जिसमें दो छोटे बच्चे भी शामिल थे। सभी को अपने घर में आश्रय दिया। वो लोग जो डर से कांप रहे थे, उन्हें बुद्धे राम ने हिम्मत दी। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। जल्द ही बुद्धे राम का खुद का घर भी उस प्रलय की चपेट में आ गया।

"ऐसी गाड़ियां हज़ारों आ जाएंगी, पहले जान बचाओ"

बुद्धे राम के किरायेदार पवन कुमार ने बताया कि जैसे ही पानी ट्रकों और घर की नींव तक पहुंचा, बुद्धे राम ने बिना डरे कहा: “गाड़ियां फिर ले लेंगे... लेकिन जान दोबारा नहीं मिलेगी। भागो यहां से।”

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तेज बहाव में गिर पड़े

उन्होंने सबको बाहर निकलने को कहा और खुद भी सभी के साथ जंगल की ओर भागने लगे। मगर जैसे ही वह गेट तक पहुंचे, तेज बहा ने उन्हें जोर से धक्का दिया। वो सीधा बरामदे में गिर पड़े। लोगों ने उन्हें बाहर निकाला, CPR दी, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

25 लोगों की बचाई जान

उस रात बुद्धे राम के घर में कुल 25 लोग मौजूद थे। कई परिवारों ने अपने घर उजड़ने के बाद शरण यहीं ली थी। पानी जब घर में भी घुस आया तो लोग खेतों और जंगल की तरफ भागे। बुद्धे राम के घर की एक पूरी मंजिल मलबे में दब गई, वहीं खड़ी दो ट्रकें और कई अन्य गाड़ियां भी बाढ़ में समा गईं। मगर इन सबके बीच जो सबसे कीमती चीज बची- वो थीं जानें, जिन्हें बुद्धे राम ने अपनी समझदारी, साहस और मानवता से बचाया।

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तीन बाद बेटे को चला पता

बुद्धे राम का बड़ा बेटा बबलू किसी दूसरे शहर में काम कर रहा था। आपदा के बाद जब थुनाग का संपर्क देश-दुनिया से कट गया, तो बबलू को सिर्फ इतना पता चला कि क्षेत्र में तबाही हुई है। लेकिन वो यह नहीं जान पाया कि उसने अपने पिता को खो दिया है।

 

तीन दिन बाद जब बगस्याड़ तक गाड़ियां पहुंचीं, तब वह वहां से पैदल ही घर की ओर निकल पड़ा। रास्ते में लोगों ने बताया कि उसके पिता की मौत आपदा वाली रात ही हो चुकी है और अंतिम संस्कार भी हो चुका है। बबलू को अपने पिता के अंतिम दर्शन तक नसीब नहीं हो सके। उसका छोटा भाई यशवंत, जो घर पर ही था, ने सभी अंतिम रस्में निभाईं।

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जीवनभर की पूंजी भी बह गई

बुद्धे राम की ट्रांसपोर्ट कंपनी भले छोटी थी, लेकिन मेहनत और ईमानदारी से बनाई गई थी। उसी कंपनी की दो ट्रकें, कुछ अन्य गाड़ियां और घर की एक पूरी मंज़िल मलबे में दब गई। जो किरायेदार उनके साथ रह रहे थे, उनका भी बड़ा नुकसान हुआ है। मगर बुद्धे राम ने अपनी पूरी पूंजी को पीछे छोड़ दिया ताकि किसी और की सांसें आगे चल सकें।

 

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