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February 15, 2025
हिमाचल: आज भी नहीं मिली पेंशन, सुबह-शाम मोबाइल चेक कर रहे हैं HRTC के पेंशनर्स
कहां है हर माह 9 तारीख तक पेंशन देने का सुक्खू सरकार का वादा ?
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शिमला। गले तक कर्ज में डूबी हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार आमदनी बढ़ाने की कोशिश में अपने वादों तक को भूल चुकी है। फिर भी खजाना है कि भरता ही नहीं। फरवरी का आधा महीना बीत चुका है और HRTC के 8500 पेंशनरों को अभी तक पेंशन नहीं मिली है। वे रोज सुबह-शाम अपना मोबाइल चेक करते हैं कि कहीं पेंशन जमा होने का मैसेज आ जाए। अब आंखें पथराने लगी हैं। सच यह है कि HRTC का खजाना खाली है और उसे पेंशन देने के लिए 22 करोड़ से अधिक की जरूरत है।
HRTC को हर महीने हिमाचल सरकार से सैलरी और पेंशन के लिए 60 करोड़ रुपए मिलते हैं। इसी सुक्खू सरकार ने तय किया है कि महीने की 2 तारीख को सैलरी और 9 तारीख तक पेंशन खाते में आ जाएगी। लेकिन HRTC के पेंशनरों को अभी तक पेंशन नहीं मिली, क्योंकि सरकारी इमदाद कहीं और खर्च हो गई।
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तकरीबन यही हाल बाकी निगमों का भी है। सुक्खू सरकार ने ट्रेजरी बंद कर दी है। अब आगामी बजट के विधानसभा में पारित होने के बाद ही ट्रेजरी खुलेगी। सवाल यह है कि फिर बाकी विभागों के कर्मियों की सैलरी और पेंशन का क्या होगा, जिसकी अदायगी के लिए सरकार को प्रतिमाह 2500 करोड़ की जरूरत होती है।
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हिमाचल प्रदेश में अगले साल यानी 2026 से आठवां वेतनमान लागू होना है। लेकिन सुक्खू सरकार पर सातवें वेतनमान के रूप में 25 से 30 लाख रुपए की देनदारी प्रति कर्मचारी है। कई बार कर्मचारी इसे लेकर कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं और सरकार पर कंटेंप्ट आफ कोर्ट भी लग चुका है. उसके बावजूद भी कर्मचारियों और पेंशनर्स को सातवें वेतन आयोग के लाभ नहीं मिल पा रहे है। ऐसे में जब आठवां वेतनमान लागू होगा तो सरकार के लिए फंड जुटाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने HRTC से जुड़े एक मामले की 17 जनवरी को सुनवाई करते हुए कहा था कि कर्मचारियों के बकाया वित्तीय लाभ जारी न करने के लिए सरकार आर्थिक संकट का बहाना नहीं बना सकती है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पात्र कर्मियों के बकाया वित्तीय लाभ अप्रैल 2024 तक जारी करने के आदेश दिए गए थे। अब सुक्खू सरकार को 27 मार्च तक कोर्ट के आदेश के अनुपालन की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करनी है और इधर, HRTC के पेंशनर्स खाली हाथ बैठे हैं। HRTC के एमडी रोहन चंद्र ठाकुर भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गए हैं।
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हिमाचल प्रदेश में चार दर्जन निगम-मंडल-आयोग व प्राधिकरण हैं। इनके अध्यक्षों, उपाध्यक्षों व सदस्यों पर सरकार हर साल करीब 250 से 300 करोड़ रुपए खर्च करती है। ये खर्च इनकी सुविधाओं मसलन वेतन, भत्ते, हवाई यात्राओं, एसी में ट्रेन का सफर , गाड़ी-पेट्रोल, कर्मचारियों, निवास, फोन आदि पर व्यय करती है। इनमें से ज्यादातर का खर्च राज्य सरकार ही वहन करती है।
सुक्खू सरकार ने भले ही इन निगम-मंडलों में भत्ते और हवाई यात्रा पर रोक लगाई है, लेकिन इससे सरकारी खजाने में प्रतिमाह करीब एक करोड़ रुपए ही बचेंगे, जो कर्जे में डूबे राज्य के लिए ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है।