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August 21, 2025

MLA अनुराधा ने उठाया हिमाचल के अस्तित्व का मुद्दा, पक्ष-विपक्ष को प्रदेश हित में सोचने की दी नसी...

हिमाचल विधानसभा में गरजी नारी शक्ति, जलवायु संकट पर अनुराधा राणा का सशक्त प्रहार

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MLA Anuradha Rana

शिमला। हिमाचल प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र बीते कुछ दिनों से लगातार चर्चाओं और विवादों में रहा है। बिजली बिलों पर बहस, कर्मचारियों की समस्याएं, विपक्ष का बहिष्कार और यहां तक कि इंडिया-पाकिस्तान मैच पर तकरार- सदन में हंगामे और राजनीतिक शोर-शराबे ने असली मुद्दों को कहीं पीछे छोड़ दिया था।

 

लेकिन इस शोरगुल के बीच आज एक सदन में एक ऐसी आवाज़ गूंजी, जिसने पूरे सदन को ठहरने और सोचने पर मजबूर कर दिया। लाहौल-स्पीति से कांग्रेस विधायक अनुराधा राणा ने जलवायु परिवर्तन और हिमाचल के अस्तित्व पर मंडराते खतरों को लेकर जो सवाल उठाए, वो सिर्फ़ पर्यावरण की चिंता नहीं थे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की गूंज थी।

धरती के दर्द की आवाज़ बनीं अनुराधा राणा

विधायक अनुराधा राणा ने प्रदेश में लगातार फट रहे बादलों पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने धराली और मयाड़ घाटी जैसे संवेदनशील इलाकों का ज़िक्र किया, तो सदन में सन्नाटा छा गया। उन्होंने बताया कि किस तरह पानी ने घाटियों को काट दिया, किस प्रकार एक ही स्थान पर छह बार पुल बह गए, और कैसे करपट गांव को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करना पड़ा। इन घटनाओं से सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की ज़िंदगी उजड़ गई है।

 

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राणा ने सीधे पूछा जब पुनर्वास के लिए जमीन ही नहीं दी जाती, तो लोग कहां जाएं। यह प्रश्न केवल एक विधायक का नहीं, बल्कि हर उस परिवार की पीड़ा है जो हर साल बाढ़, भूस्खलन और जलवायु आपदाओं से जूझता है। अनुराधा ने साफ कहा कि हमारे पास जल है जमीन है, लेकिन हम बेघर हुए लोगों को दो गज जमीन नहीं दे सकते।

अस्थायी राहत नहीं, स्थायी समाधान

राणा ने कहा कि टेंट, राशन और कंबल जैसी राहत ज़रूरी हैं, लेकिन ये स्थायी समाधान नहीं हैं। उन्होंने थ्वतमेज ब्वदेमतअंजपवद ।बज जैसी व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए, जो स्थानीय लोगों के पुनर्वास को रोक रही हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सदन को राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर एक व्यवहारिक रणनीति बनानी चाहिए। कानूनों में ज़रूरी संशोधन कर और केंद्र सरकार से स्पष्ट अनुमति लेकर स्थायी बस्तियों की योजना बनानी होगी। राणा के शब्दों में स्पष्टता थी-ये केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, यह न्याय और नीति का भी प्रश्न है।

 

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विकास नहीं, विनाश का मॉडल?

अनुराधा राणा ने प्रदेश में जारी निर्माण कार्यों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कई DPR (Detailed Project Report) फर्जी या असाइंटिफिक होती हैं, जिसमें स्थानीय लोगों की कोई भागीदारी नहीं होती। उन्होंने NHAI और BRO की कार्यशैली, ठेकेदारों की जवाबदेही और मजदूरों की भुगतान व्यवस्था पर भी तीखा सवाल उठाया। उन्होंने साफ कहा कि कुछ कंपनियां अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन जो ज़मीनी हकीकत से दूर हैं, उनकी जांच होनी चाहिए। यह केवल तकनीकी गलती नहीं, बल्कि प्रशासनिक असफलता भी है।

 

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ग्लेशियर: हिमाचल की लाइफलाइन पर मंडराता संकट

सत्र के अंत में राणा ने ग्लेशियरों की मॉनिटरिंग का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि हिमाचल के ग्लेशियर सिर्फ प्रदेश के नहीं] पूरे देश के जलस्रोतों की लाइफलाइन हैं। लेकिन उन पर कोई प्रभावी निगरानी नहीं है। उन्होंने GLOF (Glacial Lake Outburst Flood) प्रोटोकॉल लागू करने और वैज्ञानिक स्तर पर ग्लेशियर स्टडी शुरू करने की तत्काल माँग की।

उनकी चेतावनी थी—“ग्लेशियरों के पिघलने का असर सिर्फ़ पहाड़ों तक सीमित नहीं रहेगा; यह दिल्ली, गुजरात, बंगाल जैसे तटीय इलाकों तक को खतरे में डाल सकता है।”

 

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राजनीति से परे, प्रदेश के भविष्य की पुकार

जहां एक तरफ़ सदन में शोर-शराबा, तकरार और रोज़मर्रा के मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा, वहीं अनुराधा राणा की आवाज़ ने एक अलग ही विमर्श को जन्म दिया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि नारी शक्ति सिर्फ सामाजिक मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह प्रदेश के सबसे अहम और जटिल विषयों को भी उतनी ही गंभीरता से उठा सकती है।

आज उन्होंने न सिर्फ़ विपक्ष और सरकार दोनों को आईना दिखाया, बल्कि यह भी जताया कि वास्तविक राजनीति का अर्थ है—जनता और प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व।

 

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