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May 23, 2025

हिमाचल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : शादी का झूठा वादा और बार-बार टालना रे*प का आधार नहीं

महिला साबित करने में असफल रही अपनी बातें

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Himachal High Court

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और चर्चित बलात्कार मामले में फैसला सुनाते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट के निर्णय को पलट दिया है। हिमाचल हाईकोर्ट ने रेप केस में बड़ा फैसला सुनाया है।

हिमाचल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई पुरुष और महिला लंबे समय तक रिश्ते में रहते हैं और इस दौरान उनके बीच सहमति से यौन संबंध बनते हैं, तो यह मानना कठिन है कि महिला की सहमति केवल शादी के वादे पर आधारित थी।

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पांच साल से चल रहा था रिश्ता

यह टिप्पणी उस मामले में की गई- जिसमें शिकायतकर्ता महिला ने अपने पुरुष साथी पर बलात्कार का आरोप लगाया था। दोनों लगभग पांच वर्षों तक रिश्ते में थे। महिला का आरोप था कि पुरुष ने शादी का झांसा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाए, और बाद में विवाह से इनकार कर दिया। यह मामला सिरमौर जिले की नाहन स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट में विचाराधीन था, जिसने आरोपी के खिलाफ BNS की धारा 376(2)(n) (बार-बार बलात्कार) के तहत आरोप तय किए थे।

हाईकोर्ट का रुख और टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने आरोपी की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि-

  • शिकायतकर्ता महिला यह साबित करने में असफल रही कि आरोपी ने उससे विवाह करने से इनकार किया।
  • यदि कोई संबंध पांच वर्षों तक चलता है और इस दौरान दोनों पक्षों की स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनते हैं, तो इसे यह मानकर नहीं देखा जा सकता कि सहमति केवल विवाह के आश्वासन पर आधारित थी।
  • यदि शिकायतकर्ता विवाह न होने के कारण बाद में पछताती है- तो इससे सहमति की प्रकृति नहीं बदल जाती। खासकर तब जब यह सहमति स्वेच्छा से दी गई हो और उसमें धोखा साबित न हो।

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FIR और गवाहों पर नजर

हाईकोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि महिला की एफआईआर में ऐसा कोई सीधा आरोप नहीं था जिससे यह स्पष्ट हो कि आरोपी ने शादी से इनकार किया था। इस आधार पर भी बलात्कार का मामला टिकता नहीं है।

देहज मांगने का आरोप

साथ ही अदालत ने इस पहलू पर भी गौर किया कि शिकायत में आरोपी के परिवार द्वारा दहेज मांगने का आरोप लगाया गया था, लेकिन गवाहों के बयानों से यह प्रमाणित नहीं हो सका कि स्वयं आरोपी ने कभी दहेज की मांग की थी। इस कारण दहेज निषेध अधिनियम के तहत लगाए गए आरोप भी कमजोर पाए गए।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के “महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य” मामले का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई महिला संभावित परिणामों को समझते हुए किसी पुरुष के साथ सहमति से यौन संबंध बनाती है, तो इसे उसकी "जानबूझकर दी गई सहमति" माना जाएगा। सहमति केवल तभी अमान्य मानी जा सकती है जब यह धोखाधड़ी या गलत आश्वासन के आधार पर ली गई हो, जिसे इस मामले में सिद्ध नहीं किया जा सका।

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