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August 5, 2025
हिमाचल में नियमित नहीं होंगे अवैध कब्जे, हाईकार्ट ने रद्द की नीति; सरकार पर भी की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने दोषी राजस्व अधिकारियों पर कार्रवाई के दिए निर्देश
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शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है, जिसके अंतर्गत सरकारी भूमि पर किए गए अवैध कब्जों को नियमित करने का प्रावधान था। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह सरकारी जमीन से सभी प्रकार के अतिक्रमणों को कानून के अनुसार हटाने की दिशा में तत्काल प्रभाव से सख्त कार्रवाई शुरू करे और यह प्रक्रिया 28 फरवरी 2026 तक निष्कर्ष तक पहुंचाई जाए।
यह ऐतिहासिक निर्णय न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंदर नेगी की खंडपीठ ने सुनाया। यह फैसला पूनम गुप्ता द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसमें सरकारी भूमि पर हो रहे अतिक्रमण और उन्हें वैध बनाने की सरकारी कोशिशों को चुनौती दी गई थी।
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कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी भी लोकतांत्रिक राज्य सरकार का कर्तव्य सुशासन देना है, और इसमें कानूनों का निष्पक्ष रूप से पालन कराना अनिवार्य रूप से शामिल है। अदालत ने कहा कि यदि सरकार अवैध कब्जों को हटाने में विफल रहती है, तो यह शासन व्यवस्था की विफलता के समान है। अदालत ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जताई कि सरकार की अतिक्रमण माफी नीति समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है, लेकिन जब अवैध कब्जा करने वालों को माफ कर दिया जाता है, तो यह कानून का मजाक बन जाता है और ईमानदार नागरिकों के साथ अन्याय होता है।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह मूकदर्शक नहीं बना रह सकता जब सत्ता के प्रभावशाली गलियारों में बैठे लोग सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग करें। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह सरकारी भूमि हड़पने के मामलों की निष्पक्ष जांच करे और दोषियों पर त्वरित और कठोर कार्रवाई करे।
इस फैसले में हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए को भी असंवैधानिक ठहराया है। अदालत ने कहा कि यह धारा मनमानी है और इसके तहत सरकार ने अतिक्रमणों को नियमित करने का अधिकार स्वयं को दे दिया थाए जो कि मूल अधिनियम की भावना और संविधान के अनुरूप नहीं है। इस धारा के अंतर्गत बनाए गए सभी नियम भी रद्द कर दिए गए हैं।
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अदालत ने राज्य सरकार को सलाह दी कि वह आपराधिक अतिक्रमण के खिलाफ कानून में आवश्यक संशोधन करे, जैसा कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा जैसे राज्यों में किया गया है। इससे सरकारी भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी और अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कड़ा संदेश जाएगा।
हाईकोर्ट ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई कि जिन राजस्व अधिकारियों की देखरेख में यह अतिक्रमण हुआ, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। कोर्ट ने कहा कि हजारों अतिक्रमण रातोंरात नहीं हो सकते, यह संभव ही नहीं है कि अधिकारी अनजान रहे हों। कोर्ट ने महाधिवक्ता को निर्देश दिया कि वे इस आदेश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव और सभी संबंधित अधिकारियों को भेजें और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई शुरू की जाए।
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गौरतलब है कि वर्ष 2002 में राज्य सरकार ने एक नीति के तहत सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों से कब्जों को नियमित करने के लिए आवेदन मांगे थे। इस नीति के तहत लगभग 1.67 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें 24,198 एकड़ सरकारी भूमि पर कब्जों को वैध करने की मांग की गई थी।
इसके बाद वर्ष 2017 में राज्य सरकार ने 5 बीघा तक की सरकारी भूमि पर कब्जा करने वालों को राहत देने के उद्देश्य से एक नया ड्राफ्ट नियम राजपत्र में प्रकाशित किया था, लेकिन इन ड्राफ्ट नियमों को अदालत में चुनौती दी गई थी। अब इस फैसले के साथ, इन सभी प्रयासों पर पूर्ण विराम लग गया है।