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December 9, 2025

इतिहास में पहली बार नदी पार आएंगे चालदा महासू- सिरमौर को 5 साल पहले ही मिल चुका था संकेत

पश्मी गांव में 2020 से मौजूद देव-चिन्ह घांडुवा बकरा बना था आगमन का संकेत

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 chalda mahashu

सिरमौर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के लिए इस वर्ष इतिहास स्वयं लिखा जा रहा है। जौनसार-बावर की गहरी लोक-आस्था में पूजित और न्याय के देवता कहे जाने वाले छत्रधारी चालदा महासू महाराज पहली बार हिमाचल की धरती पर प्रवास के लिए आ रहे हैं। ये पहली बार है जब चालदा महासू नदी पार या टौंस पार जा रहे हैं। 

5 साल पहले ही गांव पहुंच गया था देव-चिन्ह

यह वही दिव्य घटना है, जिसका संकेत सिरमौर के पश्मी गांव ने पांच वर्ष पहले ही पा लिया था, जब उत्तराखंड से एक अद्भुत भारी-भरकम बकरा, देव-चिन्ह ‘घांडुवा’, अचानक गांव में आकर स्थिर हो गया था। ग्रामीणों को तब पता नहीं था कि यह स्वयं देवता के आगमन का संदेश है। आज वही संकेत साकार हो चुका है जौनसार बावर के दसऊ गांव से 70 किलोमीटर लंबी भव्य देव-यात्रा शुरू हो चुकी है, और हजारों श्रद्धालु इस दुर्लभ आध्यात्मिक क्षण के साक्षी बन रहे हैं।

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देवता ने पहले ही दे दिया था आगमन का संकेत

पश्मी गांव के लोगों के लिए यह यात्रा साधारण नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी दैवी अनुभूति का पूरा होना है। वर्ष 2020 के लॉकडाउन में कोटि कनासर (जौनसार) से एक विशाल बकरा अचानक गांव में आकर रहने लगा। ग्रामीणों ने इसे आवारा पशु समझा, लेकिन न इसका डरना, न हांकने पर हटनाइसकी अद्भुत निर्भीकता ने सबको चकित किया।

 

लगभग दो साल बाद देवी वक्ता के माध्यम से पता चला कि यह कोई सामान्य बकरा नहीं, बल्कि चालदा महासू महाराज का ‘देव-चिन्ह’ है, जिसे देवता अपने आने से पहले भेजते हैं। जहां देव-चिन्ह टिक जाए, वही स्थान भविष्य का प्रवास माना जाता है। यही कारण है कि पश्मी गांव पिछले पाँच वर्षों से एक चमत्कारिक प्रतीक्षा में था।

दसऊ से शुरू हुई देव-यात्रा

सोमवार को शुभ मुहूर्त में दसऊ मंदिर से छत्रधारी चालदा महासू महाराज अपनी पालकी में विराजमान होकर बाहर आए तो श्रद्धालुओं की भीड़ टूट पड़ी। महिलाएं भावुक होकर रो पड़ीं, क्योंकि देवता पहली बार सिरमौर की ओर प्रस्थान कर रहे थे।

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इस यात्रा में 4050 देव-चिन्ह, सैकड़ों किन्नर, हज़ारों श्रद्धालु और भेट-सामग्री शामिल हैं। हिमाचल के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान भी यात्रा के आरंभिक क्षणों में मौजूद रहे।

देव-यात्रा का विस्तृत क्रम इस प्रकार है:

  • दिसंबर: दसऊ में रात्रि विश्राम
  • 10 दिसंबर: भूपऊ
  • 11 दिसंबर: म्यार खेड़ा
  • 12 दिसंबर: सावड़ा में बुरायला-जगथान की बागड़ी
  • 13 दिसंबर: द्राबिल, हिमाचल प्रदेश में भव्य बागड़ी
  • 14 दिसंबर: पश्मी गांव के नए भव्य मंदिर में विराजमान

अंतिम पड़ाव सिरमौर में होगा, जहां देवता एक वर्ष तक निवास करेंगे।

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सिरमौर में सदियों बाद खुला सौभाग्य

सिरमौर के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं। कहा जाता है कि चारों महासू भाइयों में चालदा महासू सबसे अनुज हैं और भ्रमणप्रिय भी वे स्थायी रूप से किसी मंदिर में नहीं रहते और समयसमय पर क्षेत्रों का भ्रमण करते हुए भक्तों के दुःख दूर करते हैं।

सिरमौर में उनका यह पहला पदार्पण है, इसलिए जिलेभर में उत्साह और भक्ति की लहर है। अनुमान है कि इस ऐतिहासिक प्रवास में 30,000 से अधिक श्रद्धालु शामिल होंगे।

ग्रामीण मान्यताओं के अनुसार, जहां देवता प्रवास करते हैं, वहां धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं। पश्मी गांव इस दिव्य परिवर्तन के स्वागत के लिए वर्षों से प्रतीक्षा में है और अब वह क्षण बिल्कुल सामने है।

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