#धर्म
January 11, 2025
हिमाचल का वो पवित्र स्थान- जहां भोलेनाथ ने खोली थी अपनी तीसरी आंख
हिमाचल में महादेव ने खोली थी अपनी तीसरी आंख
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कुल्लू। हिमाचल प्रदेश को "देवी-देवताओं की भूमि" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यहां प्राचीन मंदिर, धार्मिक स्थल, और विशिष्ट लोक परंपराएं विद्यमान हैं। राज्य के हर क्षेत्र में देवी-देवताओं की उपासना की जाती है, और इन्हें यहां के निवासियों का संरक्षक माना जाता है। कुल्लू की दुर्गा पूजा, शिमला के जाखू मंदिर, और चामुंडा देवी मंदिर जैसे स्थल इसकी पवित्रता को प्रकट करते हैं। यहां के मेले और त्यौहार, जैसे कुल्लू दशहरा, लोक संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं। हिमाचल की वादियों में बसे इन मंदिरों और परंपराओं ने इसे आध्यात्मिकता और श्रद्धा का केंद्र बना दिया है।
आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे पवित्र स्थान के बारे में बताएंगे- जहां दो गंगा का संगम होता है। साथ ही जहां पर बाबा भोलेनाथ ने अपनी तीसरी आंख खोली थी- जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
हम बात कर रहे हैं हिमाचल के उस शिव मंदिर की जहां गिरा था मां पार्वती का कर्णफूल और इसी कारण से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ा। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इसी स्थान पर नदी में क्रीड़ा करते हुए एक बार मां पार्वती के कान के आभूषण की मणि पानी में गिर गई और पालात लोक में चली गई।
इसके बाद भगवान शिव ने अपने गणों को मणि ढूंढने को कहा। मगर बहुत प्रयास के बाद भी शिव-गणों को मणि नहीं मिली। ऐसे में शिव शंकर ने नाराज होकर अपना विकराल रूप धारण किया और अपना तीसरा नेत्र खोल दिया, जिससे वहां नयना देवी प्रकट हुईं- इसलिए, यह जगह नयना देवी की जन्म स्थली भी मानी जाती है।
इसके बाद नयना देवी ने पाताल में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने को कहा तो शेषनाग ने महादेव को माता पार्वती की मणि लौटा दी। कथा बताती है- त्रिनेत्र खोलते वक्त महादेव इतने अधिक क्रोधित हुए थे कि वहां बहने वाली नदी का पानी अपने आप उबलने लगा था, जो आज भी देखा जा सकता है। इस पानी से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि इस गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से चर्म रोग भी ठीक हो जाता है।
ये स्थान कुल्लू से लगभग 45 किलोमीटर और प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट कसोल से करीब चार किमी आगे मौजूद है- जहां हर वक्त शिवभक्तों का जमावड़ा लगा रहता है।
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