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December 16, 2025

हिमाचल में है 28 किमी लंबी रहस्यमयी गुफा- जहां विराजित है शिव परिवार, श्री कृष्ण के विवाह से जुड़ी है कथा

गुफा से निकलने वाले अंतिम मानव थे पांडव

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Kaali Tibba Himachal

सोलन। महाभारत काल में पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान देव भूमि हिमाचल की कई जगहों पर ठहरे थे। इसी सूची में प्रदेश के सोलन जिले का काली टिब्बा भी शुमार है। यहां पर बनी गुफा अपने साथ कई रहस्यों को दबाए हुए है। 

दूसरे छोर तक जाना है नामुमकिन

हिमाचल की ये गुफा 28 किलोमीटर लंबी है- जिसके एक छोर से दूसरे छोर तक जाना नामुमकिन है। गुफा के अंदर बनी है- शिवलिंग, शेषनाग जैसी आकृतियां और इस गुफा का अंत पाने जो भी गया वो कभी वापस ही नहीं लौटा।

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पांडव-जामवंत गुफा नाम से प्रसिद्ध

दूर से देखने पर करोल पर्वत- गड़वे यानी लोटे की तरह नजर आता है और इसी पर्वत के भीतर छिपी है ये गुफा- जिसे लोग पांडव गुफा, जामवंत की गुफा और सिद्ध बाबा करोल की गुफा के नाम से जानते हैं।

रची पांडवों को जलाने की साजिश

मान्यता है कि इस गुफा का इतिहास सीधे महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहते हैं जब पांडवों को लाक्षागृह में जिंदा जलाने की साजिश रची गई थी तो वे इसी सुरंगनुमा गुफा के रास्ते बचकर निकले थे। माना जाता है कि इस गुफा को पार करने वाले पांडव अंतिम मानव थे। 

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जामवंत ने कहा- भुजाएं संतुष्ट नहीं

कहते हैं कि इस गुफा में शिव का परिवार भी रहा करता था। वहीं, इस गुफा का संबंध रामायण के महान योद्धा जामवंत से भी जुड़ा है। कहते हैं लंका युद्ध के जामवंत ने श्रीराम से कहा कि उनकी भुजाएं अभी संतुष्ट नहीं हुईं। तब श्रीराम ने वचन दिया कि द्वापर युग में उनकी ये इच्छा पूरी होगी।

श्रीकृष्ण ने याद दिलाया था वचन

इसके बाद जामवंत इसी गुफा में रहने लगे। द्वापर युग के अंत में जब श्रीकृष्ण से उनका युद्ध हुआ, तो उन्हें श्रीराम का वचन याद दिलाया गया और जामवंत को अपनी भूल का एहसास हुआ।

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गुफा में कृष्ण-जामवंती का विवाह 

गुफा के मुहाने पर आज भी प्राचीन ठाकुरद्वारा मंदिर है और आषाढ़ माह के पहले रविवार को यहां सिद्ध बाबा करोल का मेला लगता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण और जामवंती का विवाह इसी गुफा में हुआ था।

कहते हैं- यहां आज भी है संजीवनी  

यहां तक कि ये भी माना जाता है कि जब हनुमान जी हिमालय से संजीवनी बूटी का पहाड़ उठा लेकर जा रहे थे तो उसमें से कुछ हिस्सा यहां भी गिरा था, जिससे आज भी यहां पर संजीवनी बूटी होने की बात कही जाती है।

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हरियाणा के पिंजौर निकलती गुफा 

लोग मानते हैं कि ये गुफा हरियाणा के पिंजौर तक जाती है जिसके प्रमाण भी मौजूद हैं- 1982 में जर्मनी के वैज्ञानिकों ने जब इस गुफा में रंगीन पानी डाला, तो वही पानी पिंजौर गार्डन के प्राकृतिक चश्मों में निकल आया। इससे माना जाता है कि गुफा के भीतर कोई बड़ी झील भी हो सकती है।

50 फीट तक जाना ही है सुरक्षित

गुफा के अंदर प्रवेश करते ही शिवलिंग, शेषनाग जैसी आकृतियां दिखती हैं, लेकिन सुरक्षा कारणों से अंदर सिर्फ 50 फीट तक ही जाया जा सकता है, क्योंकि अंदर पानी, फिसलन, अंधेरा और सांप-बिच्छुओं का खतरा रहता है।

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