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December 15, 2025

हिमाचल में देवी-देवताओं के कपाट बंद : नहीं होगी इन मंदिरों में पाठ-पूजा, शुभ कामों पर भी लगी रोक

लोगों की खुशहाली के लिए देवता से करते है भेंट

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Devbhoomi himachal

कुल्लू। देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में हर जिले की अपनी अलग धार्मिक परंपराएं और मान्यताएं हैं। यहां देवी-देवता न केवल आस्था का केंद्र हैं, बल्कि लोगों के रहन- सहन, छोटे बड़े फैसलों  और उनकी खुशहाली के मार्गदर्शक भी माने जाते हैं। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा कुल्लू जिले में देखने को मिलती है, जहां देवी-देवता हर साल स्वर्ग प्रवास पर जाते हैं। 

लोगों की खुशहाली के लिए देवता से करते है भेंट

बता दें कि कुल्लू जिले में हर साल पौष और माघ संक्रांति के अवसर पर देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर जाते हैं। मान्यता है कि इस दौरान वे देवराज इंद्र से भेंट कर अपने - अपने क्षेत्र की सुख-समृद्धि और आने वाले वर्ष की खुशहाली को लेकर विचार-विमर्श करते हैं।

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250 देवी-देवता हुए स्वर्ग प्रवास के लिए हुए रवाना

वहीं, आज सोमवार पूजा-अर्चना के बाद कई देवालयों के कपाट बंद कर दिए गए है। देवलुओं के अनुसार कूल्लू जिले के लगभग 250 देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर जा चुके है और उनके मंदिर पुरी तरह बंद कर दिए गए है। इसके अलावा कुछ देवता माघ संक्रांति के अवसर पर भी स्वर्ग प्रवास के लिए रवाना होंगे। 

गुरों के माध्यम से लोगों को देंगे संदेश 

स्वर्ग प्रवास से लौटने के बाद देवी-देवता अपने गुरों के माध्यम से लोगों को आने वाले वर्ष की प्राकृतिक आपदाओं और आने वाले समय से जुड़े अच्छे बुरे  का संदेश भी देते हैं जैसे की उस क्षेत्र की फसल कैसी रहेगी और मौसम कैसा बना रहेगा। जो देवता अभी धरती पर विराजमान हैं, वे भक्तों के घर-घर जाकर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

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बुरी शक्तियों से बचाव के लिए खास परंपराएं

मान्यता है कि जब देवी-देवता स्वर्ग प्रवास पर होते हैं, तो असुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। इसलिए कई देवी-देवता जाने से पहले अपने भक्तों को सरसों और चावल के दाने देते हैं, ताकि लोग बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहें। इसी के चलते पौष माह में घाटी के कई इलाकों में दियाली पर्व मनाया जाता है। इस दौरान मशालें जलाई जाती हैं और परंपरागत तरीकों से बुरी शक्तियों को दूर भगाया जाता है।

देवताओं की वापसी का रहता है इंतजार 

देवी-देवताओं के स्वर्ग प्रवास के दौरान धार्मिक गतिविधियों पर रोक लग जाती है। इस समय लोग शादी, मुंडन और अन्य शुभ कार्य नहीं करते। इससे लोगों के मन में थोड़ी उदासी भी रहती है। लोग बेसब्री से देवी-देवताओं की वापसी का इंतजार करते हैं,  ताकि दोबारा धार्मिक और मांगलिक कार्य शुरू हो सकें।

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