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September 6, 2025

राजस्थान से हिमाचल आईं थी ये देवी मां, पृथ्वीराज चौहान से जुड़ा है इतिहास

हर मनोकामना पूरी करती हैं माता

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Kote waali Mata

कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में एक ऐसी देवी वास करती हैं जिनका इतिहास सीधा पृथ्वीराज चौहान से जुड़ा है। ये राजस्थान से हिमाचल आईं थीं और फिर यहीं की होकर रह गईं।

बूढ़ी अम्मा के रूप में दर्शन

माता के मंदिर से जुड़ी सबसे बड़ी मान्यता ये है कि मां यहां बूढ़ी अम्मा के रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं और इनके दरबार में मांगी गई हर मन्नत आज भी पूरी होती है। 

12वीं सदी की रणभूमि

कांगड़ा गुरियाल के जंगलों में बसने वाली इन माता के मंदिर का नाम है कोटे वाली का मंदिर। इस मंदिर की कहानी हमें सीधे 12वीं सदी की रणभूमि में ले जाती है। 

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भड़क उठी थी बगावत

उस वक्त दिल्ली के शासक आनंदपाल तोमर ने अपना सिंहासन अपने नाती, पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया। मगर सत्ता का ये बदलाव सबको रास नहीं आया और बगावत भड़क उठी।

कुलदेवी के साथ पहुंचे शिवालिक

पृथ्वीराज ने अपनी तलवार की धार से इस विद्रोह को कुचल दिया, लेकिन कई विद्रोही उत्तर की ओर भाग निकले। इन भागने वालों में कुछ कोटा से थे, जो अपनी कुलदेवी को साथ लेकर हिमाचल की शिवालिक पहाड़ियों तक आ पहुंचे।

जंगलों के बीच की गई स्थापना

यहीं घने जंगलों के बीच देवी को स्थापित किया गया। तभी से माता यहां विराजमान हैं और लोग इन्हें कोटे वाली माता कहते हैं। माता के दरबार में कई चमत्कारों की कहानियां सुनाई जाती हैं। 

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मां ने पूरी की संतान की कामना

एक घटना तो आज भी गांव में बड़े भाव से सुनाई जाती है। गुरियाल गांव का एक दंपति, जिसके घर वर्षों से संतान नहीं थी, माता के चरणों में आया। आंसुओं में भीगी मन्नत, और कुछ ही समय में उनके आंगन में किलकारी गूंज उठी, एक कन्या का जन्म हुआ। 

मंदिर जाना भूल गया दंपति

मगर वक्त बीता और परिवार माता के दरबार में आना भूल गया। फिर एक दिन, उनकी बेटी अचानक गायब हो गई। गांव-गांव, कोना-कोना छान मारा, मगर कोई सुराग नहीं मिला। हताश होकर वे माता के मंदिर पहुंचे। 

मां से लगाई मदद की गुहार

आंखों में आंसू, जुबां पर बस एक पुकार - “मां, हमारी मदद करो।” और तभी… मंदिर के पीछे से उनकी बेटी बाहर आई। फिर जब उससे पूछा गया कि तुम कहां थी, तो मासूम मुस्कुराकर बोली - “मैं अपनी अम्मा से मिलने गई थी… उन्होंने मुझे हलवा-पूरी खिलाई।”

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झोली भरकर लौटते श्रद्धालु

बताते हैं इसी घटना के बाद से कोट वाली माता की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई, और आज भी यहां आने वाला हर श्रद्धालु, अपनी झोली भरकर ही लौटता है।

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