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September 14, 2025

सिर्फ एक पेड़ से बना है हिमाचल के इन देवता साहिब का मंदिर, चींटियों ने की है नक्काशी

लाख कोशिशों के बाद जमीन से ऊपर नहीं आया शिवलिंग

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Himachal Devi Devta

मंडी। हिमाचल के एक देवता साहिब मगरू महादेव जी का पूरा मंदिर सिर्फ एक ही पेड़ से बनाया गया है और ताज्जुब तो इस बात का होता है कि इस मंदिर की छत पर एक भी जोड़ नहीं है।

चींटियों ने की है नक्काशी

माना जाता है कि देवता साहिब के मंदिर में जो नक्काशी हुई है वो चींटियों ने की है। इस मंदिर में रखी हुई कई क्विंटल की शिला शिव परिवार समेत ब्रह्मा और विष्णु जी भी विराजते हैं।

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रथ के पीछे पंचमुखी मोहरा 

सराज के छतरी में विराजित मगरू गढ़ के पालनकर्ता मगरू महादेव जी की शिवलिंग स्वयम्भू है जिनके रथ के पीछे पंचमुखी मोहरा जुड़ा है जो नगाड़े सहित जमीन से ही प्रगट हुआ था। 

एक जगह पर दूध अर्पित

बताते हैं कि चौरा गांव की एक कामधेनु गाय हर दोपहर ठीक 12 बजे एक स्थान पर जाकर दूध अर्पित करती थी। ऐसे में सात ग्वालों ने गाय को मौली बांधी और उसका पीछा करते हुए उस स्थान तक पहुंचे।

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शिवलिंग का हुआ प्राकट्य

खुदाई की तो वहां शिवलिंग के दर्शन हुए लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वो शिवलिंग जमीन से ऊपर नहीं आ सका। तब उन्होंने कहा कि अगर तुम दैवीय हो तो स्वयं प्रकट हो जाओ वरना पाताल में समा जाओ और उसी क्षण शिवलिंग का प्राकट्य हो गया। 

पहले ही थी मंदिर की नींव 

इसके बाद तय हुआ कि वहीं मंदिर बनेगा और संयोग देखिए, वहां पांडव पहले ही मंदिर की नींव रख चुके थे। कहते हैं कि एक बार मंडी से लौटते कुछ लोग छतरी में रुके जिनमें एक कुशल मिस्त्री भी था। 

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एक पेड़ से बनाना है मंदिर

रात को स्वप्न में देवता जी ने उसे आदेश दिया कि यहां एक विशेष देवदार का पेड़ है, उसे काटो। जहां उसकी चोटी गिरेगी, वहीं मंदिर बनेगा और मंदिर केवल उसी एक पेड़ से बनाना है। 

नजर आतीं चींटियों की कतारें 

जब पेड़ काटा गया तो उसकी चोटी सीधा पांडवों की रखी नींव पर जाकर गिरी और वहीं पर मंदिर निर्माण शुरू हो गया। इसके बाद रात को मिस्त्री लकड़ी के टुकड़े करता और सुबह उन पर चींटियों की कतारें नजर आतीं। 

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उन्हीं रास्तों पर काष्ठकला 

मिस्त्री ने उन्हीं रास्तों पर काष्ठकला उकेरनी शुरू की और आज मंदिर की छत पर महाभारत, कृष्णलीला, वेद-पुराण और कर्मों के फल की अनमोल झांकियां नजर आती हैं। 

चार औजारों से निर्माण

बाकी रंदा, बहली, आरी और छेनी, यही वो चार औजार हैं जिससे इस पूरे मंदिर का निर्माण हुआ है जहां माता शिकारी भगवती जी का भी वास है - और हर पूजा से पहले वो स्वयं मंदिर में आकर विराजित हो जाती हैं।

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