#धर्म
September 18, 2025
माता हाटेश्वरी के वरदान से जन्मे हिमाचल के ये देवता साहिब, कृष्ण रूप में होती है पूजा
महिला ने घर से बाहर फेंक दिए थे देवता के मोहरे
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शिमला। हिमाचल के देवता साहिब डूम गुठानिया लैलन माता हाटेश्वरी जी वरदान से जन्मे थे। ये देवता साहिब श्री कृष्ण रूप में पूजे जाते हैं इसलिए इनके क्षेत्र की सभी गउओं के पहले माखन और घी का भोग इन्हें ही लगाया जाता है।
कहते हैं जुब्बल की डूम डमई धार में ये देवता गाय चराया करते थे, वहीं से इनका नाम डूम पड़ा। अब जिस जगह ये आज विराजते हैं, वहां तक पहुंचने की भी एक पूरी लोकगाथा है।
मान्यता है कि ठियोग के गुठान से इन्हें घड़ेल परिवार चमड़े में ढक कर ननखरी के बनोगा गांव लाया था लेकिन उस वक्त इस इलाके पर राज था देवता पल्थान देलठ जी का।
ऐसे में नई शक्ति को कोई ठौर नहीं मिला, तो डूम देवता गांव के बच्चों के साथ खेलने लगे। फिर एक दिन किसी महिला ने इनके मोहरे को घर से बाहर फेंक दिया और उसी दिन से उस परिवार पर देवदोष लग गया।
इसके बाद गांववालों ने जब देवता पल्थान से पूछा तो उन्होंने साफ कहा, ये कोई साधारण आत्मा नहीं, इन्हें स्थान देना ही होगा। तब जाकर बनोगा गांव में इन्हें एक टापरी दी गई लेकिन उसी के बाद पूरे गांव में कुष्ट रोग फैल गया।
फिर इलाज के लिए लोग पल्थान देवता के दरबार में पहुंचे। उन्होंने शर्त रखी, जो इस रोग को ठीक करेगा, वही इलाके का अधिपति माना जाएगा। ऐसे में इलाके के युवा पल्थान देवता के साथ हो लिए, और बुज़ुर्ग-बच्चे डूम देवता की शरण में गए।
बताते हैं, जो डूम देवता की ओर थे वो बच गए, बाकी सबकी जान चली गई। इसके बाद देवता पल्थान ने अपने इलाके में से कुछ गाँव इन्हें सौंप दिए। मां हाटेश्वरी ने डूम साहिब को चालदा राज सौंपा और ख़ुद बैठा राज लिया।
वहीं, नावन गांव का एक किस्सा और जुड़ा है, जहां एक पूरा वंश ही खत्म हो रहा था। ऐसे में एक बुज़ुर्ग ने इनसे संतान के लिए वर मांगा और वादा किया कि यदि औलाद होगी, तो कुई का फूल चढ़ाऊंगा। देवता ने वरदान दिया, फिर वंश बढ़ा और उसी दिन से आज तक, इस गाँव में देवता का कुई के फूल से स्वागत होता है।