#धर्म
November 14, 2025
हिमाचल की देव संस्कृति: किसी देवता को चढ़ती शराब, कोई भुने हुए जौ से ही हो जाते प्रसन्न
प्राकृतिक जल स्रोत से बनता है देवता साहब का प्रसाद
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शिमला। हिमाचल प्रदेश में हर देवी-देवता के लिए प्रसाद का एक विशेष प्रकार होता है। कहीं देवता को शराब चढ़ाई जाती है, तो कहीं घी में डूबे हुए सिड्डू का भोग लगाया जाता है। कहीं देवता को केवल खीर पसंद आती है, तो कोई देवता भुने हुए जौ के दानों से प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन इसके पीछे एक गहरी वजह छुपी होती है, जो आज की इस खोजपरख में हम जानेंगे।
हमारे सभी देवी-देवताओं के थाल में एक अलग सुगंध होती है, और देवता वही प्रसाद स्वीकारते हैं जो उनके अधिपत्य के स्वभाव और मौसम के अनुसार होता है। जैसे ऊँचे पहाड़ी इलाकों में देवता को जौ और कुल्थ के दानों से बने प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, क्योंकि यही वहां की जमीन की उपज है।
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वहीं, कुल्लू और शिमला के कुछ गांवों में देवता को सिड्डू अर्पित करना शुभ माना जाता है, तो किन्नौर में रोटी और घी से बना भोग सबसे पवित्र माना जाता है। कुछ विशेष पूजा आयोजनों में घर की बनी शराब भी चढ़ाई जाती है, जिसे मदिरा नहीं, बल्कि समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
चंबा के लक्ष्मी नारायण मंदिर में सुबह-शाम पूरी और सब्ज़ी का भोग चढ़ता है, और मुख्य भोग के रूप में चंबयाली खीर अर्पित की जाती है। वहीं, विभिन्न ऋतुओं के अनुसार, ऋतुफल, मक्की, गेहूं और सब्जियां देवी-देवताओं को सबसे पहले अर्पित करने की परंपरा रही है।
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देवता के लिए बनाए गए भोग में एक विशेष नियम होता है - पानी हमेशा प्राकृतिक स्रोत से लिया जाता है, जैसे बावड़ी या किसी प्राकृतिक झरने से। माना जाता है कि देव भोजन में स्वाद नहीं, बल्कि भावना देखी जाती है।
हिमाचल के लोग यह मानते हैं कि देवता केवल मंदिरों में नहीं रहते, बल्कि वे रसोईघर की खुशबू, खेतों की मिट्टी और पकते हुए प्रसाद के धूम्र में भी होते हैं। शायद इसी वजह से कहा जाता है, "जिस थाल में श्रद्धा हो, वही देवत्व का भोजन बन जाता है। इस अनूठी संस्कृति के माध्यम से हम देखते हैं कि हिमाचल में हर प्रसाद एक कथा, एक संस्कृति और एक विश्वास का प्रतीक है।