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February 9, 2025

हिमाचल के वो देवता महाराज- जिनके गढ़ में एक साथ विराजते हैं शिव और शक्ति

शिव और शक्ति का है एक ही भंडार

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Devta Maharaj Tungasi Mahadev

शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।

देवी-देवता से जुड़ी आस्था

लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं- जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

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साथ विराजते हैं शिव और शक्ति

आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनके गढ़ में शिव और शक्ति साथ विराजते हैं। जहां इन दोनों का एक ही भंडार, एक ही गुर और एक ही पुजारी है।

 

युद्ध में चल रही गोलियों को समेटा

इन देवता साहिब को मंडी रियासत का रक्षक भी कहते हैं- जिन्होंने युद्ध में चल रही गोलियों को अपने सकपाल में समेट लिया था। हम बात कर रहे हैं सात हारियों के राजा- तुंगासी गढ़ के आराध्य तुंगासी महादेव की।

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मिट्टी के नीचे है शिवलिंग

कहते हैं कि कलयुग में जब सभी ज्योतिर्लिंग भूमिगत हो जायेंगे तो सिर्फ तुंगेश्वर र्लिंग ही सबके मार्गदर्शन के लिए बचेगा। मंडी के कोठी निहरी में विराजित रूद्र रूपी देव- तुंगासी महादेव का शिवलिंग मिट्टी के नीचे मौजूद है, जो केवल साजा के दौरान ही बाहर निकलता है।

एक-दूसरे के साथ रहता है जोड़ा

वहीं, मंडी के कोठी निहरी में विराजित देव तुंगासी और माता महामाया का ही एक ऐसा जोड़ा है- जो हमेशा एक-दूसरे के साथ रहते हैं।

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कमजोर पड़ने लगी सेना

जनश्रुतियों के अनुसार, एक बार जब कुल्लू के राजा ने मंडी रियासत पर हमला किया तो मंडी के राजा बाणसेन की सेना कमजोर पड़ने लगी और वो युद्ध भूमि छोड़ कर अपने आराध्य तुंगासी महादेव के पास पहुंच गए। जहां देवता तुंगासी ने राजा को आशीर्वाद दिया और उसके साथ अदृश्य शक्तियों को भी युद्ध लड़ने भेज दिया। फिर इन्हीं शक्तियों ने मंडी के राजा युद्ध जिताया और युद्ध में चली गोलियों को देव तुंगासी ने अपनी सकपाल में समेट लिया।

देवता को टैक्स वसूलने का अधिकार

इसके बाद राजा ने देव तुंगासी को बल्ह के दुरगाई में 33 बीघा, च्य्योट में साढे 11 बीघा और थुनाग में साढे 7 बीघा जमीन भेंट की। इतना ही नहीं देवता को टैक्स वसूलने का अधिकार भी दिया। साथ ही राजा ने देव तुंगासी को एक ढाल और कटार भी भेंट की थी- जो आज भी उनकी तुंगा हार में रखी है।

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