#धर्म
February 11, 2025
हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनके गांव में घी से चलते थे घराट और सोने से की जाती थी बाड़ा बंदी
लालच बढ़ने लगा तो देवता साहिब ने त्याग दिया स्थान
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शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। हिमाचल की धार्मिक आस्था विभिन्न उत्सवों, लोक नृत्यों और परंपराओं में भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनके गांव में घराट घी से चलते थे और बाड़ा बंदी सोने से की जाती थी। इन देवता के आशीर्वाद से इस गांव में खूब सारी धन संपदा इकट्ठी हो गई। मगर फिर जब गांव के लोगों का लालच बढ़ने लगा तो देवता साहिब ने उस स्थान को ही त्याग दिया।
हम बात करे हैं शनोर घाटी की सबसे बड़ी रायत ब्लिंडी गढ़ के गढ़पती देवता साहिब खवलाशी नारायण की- जिनका आधिपत्य कुल 11 पंचायतों तक फैला हुआ है। इनके गढ़ का हिस्सा कुल्लू और मंडी दोनों जिलों में आता है।
कहते हैं कि देवता साहिब खवलाशी नारायण जी ने पौराणिक काल में एक गांव को असीमित धन संपत्ति का आशीर्वाद दिया था- जिससे वहां खूब सारा धन वैभव इकठ्ठा हो गया। मगर जब गांव के लोगों में लालच और इर्ष्या बढ़ने लगी तो देवता साहिब ने क्रोधित होकर इस स्थान को त्यागना चाहा।
इसके बाद से गांव की एक महिला को रोजाना गांव के पीछे पहाड़ से आवाज सुनाई देने लगी- कि मैं गिर जाऊं क्या? इस पर महिला ने जब एक दिन हां में जवाब दिया तो वो पूरा पहाड़ ही उस गांव पर गिर पड़ा। आप आज भी उस स्थान पर गिरे हुए पहाड़ और सोना मौजूद होने के प्रमाण को अपनी आंखों से देख सकते हैं।
बता दें कि खवलाश में विराजित देवता साहिब का देवरथ सबसे पुरानी रथ शैली में बना है। वहीं, देवता जी के कुल 6 मंदिर हैं और हर 14 वर्ष में इनके मेले मनाये जाते हैं। शरद ऋतु में मनाई जाने वाली उनकी हारगी के दौरान देवता साहिब अपने गढ़ के हर घर में आशीर्वाद देने जाते हैं- जिसमें 22 दिन का समय लगता है।